Radhe Radhe Quotes In Hindi

प्रतिदिन सूर्य उगने के साथ ही जाग उठती है कुछ कहानियां, कुछ संघर्ष, कुछ इच्छाएं, कुछ यात्राएं और सभी कहानियां सम्पन्न नहीं होती, सभी संघर्ष जीते नहीं जाते, सभी इच्छाएं प्राप्त नहीं होती और कुछ यात्राएं रह जाती है अधूरी, क्यों?

अब आप में से कुछ कहेंगे प्रयास अधूरा था, कुछ मानेंगे निश्चय दृढ़ नहीं था, कुछ क्रोध करेंगे, तो कुछ इस असफलता का बोझ अपने भाग्य के कांधों पर डाल देंगे।

परन्तु इन सबका कारण केवल एक तत्व की कमी, कमी है “ढाई अक्षर की”, कमी है “प्रेम” प्रेम जो ना शास्त्रों की परिभाषा में मिलेगा, ना शस्त्रों के बल में, ना पाताल की गहराईयों में, ना आकाश के तारों में।

 

तो ये प्रेम है कहाँ, कैसे पाया जाता है इसे? क्या है मार्ग प्रेम को पाने का? प्रयास रहेगा आपको यही समझाने का तो आइये, भागी बनिये इस यात्रा के, साक्षी बनिये प्रेम की इस भावविभोर कर देने वाली इस महागाथा के, जो अलौकिक होकर भी इसी लोक में रची गयी और इस यात्रा के लिए ना आपको कोई शुल्क लगेगा, ना ही कोई परिचय पत्र, बस एक बार मन से बोलना होगा राधे-राधे!

ये मटकी देख रहे है आप? इसमें जल रखा जाता है, जल जो शुद्ध रहता है, शीतल रहता है, जल जो प्यास बुझाता है।

सोचिये, यदि इस मटकी की माटी ठीक ना हो, यदि इसे भली प्रकार रौंधा ना गया हो, आकार देकर इसे अग्नि में ठीक से पकाया ना गया हो तो क्या होगा?

 

यही मन के साथ भी होता है। क्योंकि यदि प्रेम ये जल है तो इसकी मटकी है मन, मन रुपी पात्र में यदि विश्वास की माटी ना हो, यदि आंसुओं से उसे भिगोया ना गया हो, समय रुपी कुम्हार ने उसे आकार ना दिया हो और परीक्षा की अग्नि में उसे पकाया ना गया हो तो प्रेम मन में नहीं ठहर सकता।

तो यदि प्रेम को पाना है तो हृदय पर काम करना होगा और मन से कहना होगा राधे-राधे!

किसी भी वस्तु को बाँध सकने के लिए किसी बंधन का, किसी रस्सी का होना आवश्यक है। परन्तु इस रस्सी को बाँध सकने की शक्ति कौन देता है? वो धागे जिनसे जुट कर ये रस्सी बनी है।

 

अब बताइये, प्रेम को किस रस्सी से स्वयं तक बांधेंगे आप? प्रेम बनता है “विश्वास से” और विश्वास की डोरी के धागे “सत्य के धागों” से बुने जाते है।

अब प्रश्न ये उठता है कि सत्य क्या है? वो जो हमने देखा, वो जो हमने सोचा? नहीं, हमारा सत्य वो है जिस पर हमने विश्वास कर लिया और विश्वास वो जिसे हमने सत्य समझ लिया।

वास्तविकता में “सत्य” और “विश्वास” एक ही सिक्के के दो छोर है। जहां सत्य नहीं वहां विश्वास की नींव नहीं और जहां विश्वास नहीं वहां सत्य अपना धरातल खो देता है।

तो यदि किसी का सत्य जानना है तो विश्वास कीजिये, प्रेम का धरातल बन जायेगा और मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे!

मेरे आस-पास ये वृक्ष, ये पौधे, ये पुष्प देख रहे है आप? है ना सुन्दर? क्योंकि आपने इन्हें देखा है। इसी प्रकार जब प्रेम की बात आती है लोग किसी का मुख स्मरण कर लेते है।

ऐसी आँखे, वैसी मुस्कान, तिरछी भृकुटि, घने केश, पर क्या यही प्रेम का अस्तित्व है?

नहीं, ये उस शरीर का अस्तित्व है जिसे हमारी आँखों ने देखा और हमने स्वीकार कर लिया। परन्तु प्रेम, प्रेम भिन्न है, प्रेम उस वायु की भांति है जो हमें दिखाई नहीं देता, किन्तु वही हमें जीवन देता है।

संसार किसी स्त्री को कुरूप कह सकता है, क्योंकि वो उसे अपनी तन की आँखों से देखता है। परन्तु संतान उसी माता को संसार में सबसे सुन्दर समझता है, क्योंकि वो भाव से देखता है।

तन की आँखों से देखोगे तो वैसे ही पहचान नहीं पाओगे जैसे राधा मुझे पहचान नहीं पाई। इसलिए यदि प्रेम को पाना है तो मन की आँखे खोलो और प्रेम से कहो राधे-राधे!

जब भी प्रेम की बात आती है हम सबसे पहले मन में एक नायक और एक नायिका का चित्रण कर लेते है, क्यों आपके साथ भी यही होता है ना? पर, क्या प्रेम केवल नायक-नायिका के आकर्षण का बंधन है?

नहीं, प्रेम तो परिवार से हो सकता है, माता-पिता, भाई-बहन से हो सकता है, सखा-मित्रों से हो सकता है, देश और जन्म-भूमि के लिए हो सकता है, मानवता के लिए हो सकता है, किसी कला के लिए हो सकता है, इस प्रकृति के लिए हो सकता है। पर प्रेम कभी उस पन्ने पर नहीं लिखा जा सकता जिस पर पहले ही बहुत कुछ लिखा हो।

जैसे एक भरी मटकी में और पानी आ ही नहीं सकता। यदि प्रेम को पाना है तो मन को खाली करना होगा। अपनी इच्छाएं, अपना सुख सब त्याग कर समर्पण करना होगा।

अपने मन से व्यापार हटा दो तभी प्यार मिलेगा और मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे!

Radhe Radhe Quotes In Hindi Images

प्रेम, प्रेम विधाता की सबसे सुन्दर कृति है, परन्तु हर कृति हो संभालना पड़ता है।

अब इसी मूर्ति को देख लीजिये, जब कलाकार ने इसे रचा तब ये बहुत सुन्दर थी परन्तु इसके पश्चात इसे संभाला नहीं गया, इसके स्वामी ने इसकी देखभाल का कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया और अब, अब ये मूर्ति असुन्दर लगने लगी है।

इसी प्रकार केवल कह देने से प्रेम, प्रेम नहीं हो जाता। इसके लिए आपको अपने कर्तव्यों को पूर्ण करना होगा। तो देश की सुरक्षा, परिवार और संबंधियों की सुरक्षा, संतान को संस्कार, जीवन साथी का आभास, ये कर्तव्य जब तक नहीं निभाओगे, प्रेम से दूर होते जाओगे।

यदि प्रेम का अमृत पाना है तो कर्तव्य की अंजलि बनानी होगी और मन से कहना होगा राधे-राधे!

प्रेम संसार का सबसे पवित्र बंधन है, पर सच पूछो तो ये बंधन से मुक्ति है, स्वतंत्रता है। नहीं समझे? समझाता हूँ , यदि कोई आपका प्रेम ठुकरा दे, यदि कोई आपका प्रेम समझ ही ना पाए तो क्या होगा?

कुछ उदास हो जायेंगे, कुछ छल करके प्रेम पाना चाहेंगे तो कुछ बलपूर्वक प्रेम पर अधिकार करना चाहेंगे। किन्तु ये आवश्यक नहीं कि जिससे आप प्रेम करते हो उसे भी आपसे प्रेम हो।

क्योंकि प्रेम कोई वस्तु नहीं, ना राज्य है, ना धन जिसे आप बल से अपने वश में कर सको। प्रेम वो शक्ति है जो आपके लिए हर बंधन तोड़ सकती है किन्तु स्वयं किसी बंधन में नहीं फंसती। तो जिससे भी आप प्रेम करते हो उसे स्वतंत्र छोड़ दीजिये।

क्योंकि स्वतंत्रता ही वो भाव है जो जीव को सबसे अधिक प्रिय है। प्रेम सच्चा होगा तो उसे अवश्य समझ में आएगा, तब तक के लिए निस्वार्थ भाव से प्रेम कीजिये, स्वार्थ हट जायेगा तो प्रेम आ ही जाएगा और मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे!

“भय”, भय सबको होता है चाहे वो पशु हो, पक्षी हो या मनुष्य। वास्तविकता में मनुष्य भय को अपने साथ लेके ही जन्म लेता है। तो इस भय से भय कैसा ? यदि भय बुरा भाव होता तो क्या इसे हम अपने साथ लेके जन्म लेते?

वास्तविकता में भय हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। अब देखिये, जीवन जाने का भय आपसे स्वयं की सुरक्षा करवाने का प्रयास करता है। अपमान का भय सदाचार की ओर बढ़ाता है।

किसी प्रिय को खो देने का भय, उसके लिए कर्तव्य पालन करने को प्रेरित करता है। किन्तु ये भय, ये भय बुरा तब हो जाता है जब आप इसे अपने ऊपर हावी हो जाने देते है। इसके लिए कुछ प्रयास नहीं कर पाते।

इसलिए यदि इस भय को उपयोग में लाना है, आपको स्वयं इस भय के ऊपर हावी हो जाना होगा। तो तोड़ दीजिये भय की सीमाएं, अपनी आत्मा को छोड़ के किसी ओर के समक्ष सर मत झुकाइये और स्मरण रखिये जब अंधकार से डरना छोड़ दोगे तभी दीपक बन कर प्रकाश दे पाओगे। राधे-राधे!

मनुष्य का स्वभाव है “कमाना, संग्रह करना” फिर चाहे वो धन हो, नाते हो, संबंध हो या हो प्रसन्नता, परन्तु क्या आपने कभी सोचा है? नियति ने ये संग्रह करने की प्रकृति मनुष्य में क्यों डाली?

एक बीज से पौधा पनपता है, उसके भोजन से फल संग्रहित होता है क्यों? इसलिए ताकि वृक्ष उसे स्वयं खा सके? नहीं, बल्कि इसलिए ताकि वो भूखे जीवों में बाँट सके। अब आप पूछेंगे कि इसमें वृक्ष का क्या लाभ?

लाभ है, क्योंकि जो बांटता है वो मिटता नहीं। जो फल ये जीव खाते है वो उसके बीजों को वातावरण में बिखेर देते है जिससे जन्म लेते है नए वृक्ष, उसकी जाति, उसका गुण, उसकी मिठास अमर हो जाती है।

इसलिए स्मरण रखियेगा अमीर होने के लिए एक-एक क्षण संग्रह करना पड़ता है। किन्तु अमर बनने के लिए एक-एक कण बांटना पड़ता है। राधे-राधे!

संसार में सबसे बड़ी शक्ति क्या है? अब आपमें से कुछ कहेंगे “शस्त्र की”, कुछ कहेंगे “शास्त्र की”, कोई कहेगा “बुद्धि की” तो कोई कहेगा “बल की” किन्तु ये सब अधूरे है।

संसार में सबसे बड़ी शक्ति है “मित्रता” यदि सच्ची मित्रता प्राप्त हो जाये तो वही सबसे बड़ा धन है। जब आप कठिनाइयों में होंगे तो मित्रता शस्त्र बन कर सहायता करेगी। मार्ग भटक जाओगे तो मित्रता शास्त्र बन कर आपको राह दिखाएगी। षड्यंत्र में फंस जाओगे तो बुद्धि बन कर बाहर निकालेगी। अकेले हो जाओगे तो ममता बन कर साथ निभाएगी।

तो यदि इस संसार में कुछ कमाना है तो धन नहीं, मित्रता कमाओ और स्मरण रखियेगा यदि इस संसार में मित्र बनाना आपकी सबसे बड़ी दुर्बलता है तो आप इस संसार के सबसे शक्तिशाली प्राणी है। राधे-राधे!

Radha Krishna Serial Quotes In Hindi

जब से मनुष्य जाति का अस्तित्व बना है तभी से युद्ध भी अस्तित्व में आया। युद्ध जो कभी धन का द्वन्द बन के सामने आता है, तो कभी सुरक्षा का हथियार बन कर, कभी विजय की भूख के लिए, तो कभी पराजय टालने के लिए।

किन्तु वास्तविकता तो यही है कि यदि आपको आगे बढ़ना है तो बाधाओं से युद्ध तो करना होगा। परन्तु युद्ध के लिए सज्ज रहना इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना महत्त्वपूर्ण है ये समझना कि “युद्ध को टाला कब जा सकता है।”

क्योंकि सबसे सफल युद्ध वही होता है जो कभी लड़ा ही ना जाए। आप युद्ध में विजय प्राप्त करके स्वयं का मान तो बढ़ा लोगे, किन्तु अपना बल खो दोगे।

इसलिए जहां तक हो सके युद्ध को टालो, इस शक्ति को संग्रहित रखो। ताकि जब ये युद्ध धर्म बन के सामने आये आप उससे पूरे बल के साथ लड़ सको। राधे-राधे!

“मन” बड़ी ही विचित्र कृति है ये मन, शरीर के किस अंग में बसता है कोई नहीं जानता। किन्तु सम्पूर्ण शरीर इस मन की इच्छा साकार करने के लिए प्रयास करता रहता है।

अब यदि मन कुछ खाने का करे तो व्यक्ति उसकी इच्छा साकार करने का माध्यम ढूंढता रहता है। अब यदि मन किसी को शत्रु समझ ले तो व्यक्ति उसे नष्ट करने का हर सम्भव प्रयास करता है। अब यदि मन किसी से प्रेम करे तो उसकी प्रसन्नता के लिए हर सीमा लांघने के लिए सज्ज रहता है।

परन्तु जीवन सुखद हो इसके लिए ये आवश्यक है कि मन खाली रहे, इस बांसुरी की भांति। भीतर कुछ भी नहीं, ना राग है, ना द्वेष, तब भी तार छेड़ने पर स्वर निकलता है।

इसी प्रकार मन को भी भावनाओं से मुक्त रखना आवश्यक है। स्मरण रखिये, मन में कुछ भर कर जियोगे तो मन भर के जी नहीं पाओगे। राधे-राधे!

कितना सुन्दर प्रतिबिम्ब है, इसका कारण क्या है? मेरा रूप सुन्दर है या ये जल स्वच्छ है? नहीं, ये जल स्थिर है, शांत है। अंतर देख रहे है आप? वही जल है, वही रूप है, किन्तु ये स्थिर नहीं है, शांत नहीं है और इसी कारण मैं अपना प्रतिबिम्ब इसमें नहीं देख पा रहा हूँ।

क्रोध के साथ भी यही होता है। यदि आप स्थिर है, शांत है तो आप आपकी आत्मा को देख, सुन और समझ पाओगे। किन्तु क्रोध इस आत्मा की पुकार को पी जाता है।

इसलिए अपने क्रोध पर वश रखे कहीं ऐसा ना हो कि मूर्खता के कारण जन्मा ये क्रोध आपको पश्चाताप के अंत तक ले जाये। राधे-राधे!

एक पिता के लिए उसकी संतान गर्व है, उसका अहंकार है और संतान के लिए उसके पिता उसका “आदर्श”, उसकी “प्रेरणा”। बिना कहे पिता संतान की हर इच्छा समझ जाता है और उसे पूरी करने की चेष्टा करता है।

दूसरी ओर संतान – सदैव प्रयास करता है कि अपने माता-पिता को गर्वित करता रहे। किन्तु ये बंधन है, एक स्थान पे आके टूट जाता है। तब जब संतान स्वयं की इच्छा से अपना जीवन साथी चुनना चाहे, क्यों?

कारण है – संवाद की कमी। जब बात आती है संतान के विवाह की तो माता-पिता सोचते है कि इसमें संतान से पूछना क्या? हम उसके लिए कुछ अनुचित तो चाहेंगे नहीं और संतान का ये मानना होता है कि उसका भविष्य चुनना उसका अधिकार है।

दोनों आपस में दुखी रहते है, किन्तु बात कोई नहीं करता। होना ये चाहिए कि माता-पिता को स्नेह के साथ संतान की इच्छा समझ लेनी चाहिए और संतान को उसी विश्वास के साथ माता-पिता को विश्वास में ले लेना चाहिए।

एक बार संवाद करके देखिये, वर्तमान और भविष्य दोनों ठीक हो जायेंगे और मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे!

हम में ऐसा कोई नहीं होगा जिसने वृक्षों को नहीं देखा, वृक्षों पर इन पक्षियों को ना देखा, इनके घोंसलों को ना देखा, इन पक्षियों को अपने छोटे-छोटे बच्चों को भोजन कराते ना देखा, संसार का सबसे ममत्त्व वाला दृश्य होता है।

चिड़िया दूर से अपनी चोंच में दाना भर कर लाती है, स्वयं भोजन करने में असक्षम संतान की चोंच में डालती है, स्वयं भूखी रहती है, निस्वार्थ, निश्छलता और जब संतान के पंख निकल आते है वो उसे उड़ना सिखाती है और उसके पश्चात उसे स्वतंत्र कर देती है अपना जीवन जीने के लिए, इस आकाश में उड़ान भरने के लिए और हम मनुष्य क्या करते है जिस संतान को हम पंछी की भांति पालते है, उसके पंख निकलते ही हम उसे बाँध देते है, ये सोच के कि कहीं वो दूर उड़ कर ना चली जाये।

ऐसा नहीं है कि इस स्थिति में माता-पिता को संतान से प्रेम नहीं है, अवश्य है। किन्तु इसमें प्रेम पर मोह भारी पड़ जाता है। जो स्वयं अपने और संतान के बीच में बाधा बन जाता है हम ये भूल जाते है कि हम केवल जन्मदाता है, भाग्यविधाता नहीं।

तो जब प्रेम में मोह आ जाये तो वो प्रेम नहीं स्वार्थ बन जाता है। इसलिए प्रेम को पास रखिये और मोह को दूर, क्योंकि जिससे प्रेम करते है उसका विकास नहीं रोका करते। राधे-राधे!

Radhe Quotes In Hindi

कितनी सुन्दर पुस्तक है ना? सुन्दर आवरण है, सजाये हुए पृष्ठ है, किन्तु क्या ये सत्य में अद्भुत पुस्तक कहलाने की पात्र है? क्या इसमें जो लिखा है वो सत्य है, प्रेरणादायी है, हमारे लिए मूलयवान है? कैसे निश्चय लिया जाये इस बात का?

अब आप सोचेंगे सीधी सी बात है आवरण को देख के पुस्तक की गुणवत्ता कैसे जानी जा सकती है? इसके लिए तो आपको उसे पढ़ना होगा, उसे समझना होगा, समय देना होगा। है ना?

बिलकुल उचित सोच रहे है आप? बस आश्चर्य की बात ये है कि पुस्तक के विषय में आप ये सारी बात जानते है।

किन्तु किसी व्यक्ति के विषय में आप ये सारी बाते मन में नहीं लाते। व्यक्ति का मूल्यांकन भी उसकी वस्तुओं से, उसके शारीरिक रूप से, उसकी सुंदरता से नहीं किया जा सकता। उसके लिए आपको उस व्यक्ति को पढ़ना होगा, उसे समझना होगा, उसे समय देना होगा और हम क्या करते है?

पहनावे, रंग, सुंदरता को देख के आकर्षित हो जाते है, उसे प्रेम समझ बैठते है और आये दिन कोई न कोई ये कहते सुनाई देता है कि उसकी प्रेम कहानी सफल नहीं हो पायी, उसे छल मिला। किन्तु इसमें दोष किसी और का नहीं, स्वयं आपका है।

आपने उस व्यक्ति को समय नहीं दिया, आपने उस व्यक्ति के विचार नहीं परखे। प्रेम दो क्षण में बनने वाला पकवान नहीं है, इसका स्वाद चखने के लिए आपको जीवन भर का समय देना पड़ेगा। 

तो समय दीजिये, एक- दूसरे के रूप से नहीं आत्मा से जुड़िये। निश्चित ही मन प्रसन्नता से कह उठेगा राधे-राधे!

मनुष्य की “सोच” संसार का सबसे गहन या कहो सबसे कठिन भाव है। कब क्या होने के पश्चात ये मन क्या सोच बैठेगा ये कहना असम्भव है? और यही सोच कई बार हमारे मन में हीन की भावना ले आती है।

हम सदा हमसे ऊपर की श्रेणी के व्यक्तियों को देखते है, उनके जीवन का विश्लेषण करते है और फिर स्वयं को हीन समझ लेते है। इसके पास इतना धन है, उसके पास कितना बल है? और मेरे पास, मेरे पास कुछ भी नहीं। मैं कितना हीन व्यक्ति हूँ, संसार के लिए मैं कुछ भी नहीं हूँ। होता है ना ऐसा?

किन्तु ऐसा नहीं है, आपके पास भी बहुत कुछ है पलट के देखिये। किसी भूखे व्यक्ति को केवल एक रोटी मिल जाये तो भले ही दूसरों के लिए वो अन्न का दाना होगा किन्तु उसके लिए वो भोज से कम नहीं है।

इसलिए जब भी मन में हीन भावना जागे अपनों की ओर देखिये, उनकी ओर पलटिये आपको विश्वास हो जायेगा कि भले ही आप ये मानते हो कि इस संसार के लिए आप कुछ नहीं है।

कुछ लोगों के लिए आप सम्पूर्ण संसार है। तो जो आपका संसार है उसमे प्रसन्न रहना सीखिए। राधे-राधे!

असमंजस में होंगे ना आप कि मैं ये क्या कर रहा हूँ? क्या लिख रहा हूँ? देखना चाहेंगे? अब आप सोच रहे होंगे कि मैं माटी पर माटी क्यों लिख रहा हूँ?

इसके पीछे एक बड़ा कारण है किन्तु वो बताने से पूर्व तनिक मुझे पानी पर पानी तो लिखने दीजिये।

क्या हुआ, जो मैंने लिखा वो दिखाई क्यों नहीं दे रहा? ये रहा आपके पहले प्रश्न का उत्तर। माटी पर माटी लिखना कितना सरल है उतना ही कठिन है पानी पर पानी लिखना।

संबंध भी कुछ इसी प्रकार होते है बनाते समय माटी पर लिखने जितने सरल और निभाते समय पानी पर लिखने जितने कठिन।

अब प्रश्न ये उठता है कि पानी पर लिखा कैसे जाए। किस प्रकार ये पाषाण जल की सतह से होते हुए जल में समा गये।

ठीक इसी प्रकार हमें संबंधों को भी निभाना है इस पाषाण की भांति निष्ठा से गहराई में जाना है। संबंध कभी नहीं बिखरेंगे। राधे-राधे!

ग्रंथों में लिखा गया है कि यदि मनुष्य मौन रहना सीख ले तो उसकी अधिकांश समस्याएं स्वयं ही समाप्त हो जाती है और सत्य में मौन में बड़ी शक्ति होती है, बड़ा बल होता है।

किन्तु वो बल किस काम का जो समय आने पर आपके काम ही ना आये। क्या सदा मौन रहना उचित है? नहीं, इतिहास साक्षी है संसार में अधिक विपदायें इसलिए आयी क्योंकि समय पड़ने पर मनुष्य उसका विरोध नहीं कर पाया, मौन रहा।

यदि मौन रहना शस्त्र है तो उसका सही समय पर उपयोग करना भी आवश्यक है। यदि अकारण मौन रहोगे तो बुरे तत्व उसे सहमति समझ लेते है फिर धीरे-धीरे वो आपका स्वभाव बन जाता है, आपका अभ्यास हो जाता है और फिर आपका व्यक्तित्व एक साधारण से पाषाण की भांति बन जाता है।

अपनी वाणी का आवश्यकता पड़ने पर सदुपयोग कीजिये, वाणी को कब वश में रखना है और कब मौन नहीं रहना है इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है ये समझना कि उसे कब तोडना है? राधे-राधे!

जीवन में हम कई लोगों से मिलते है, आप भी ऐसे कई लोगों से मिले होंगे जिन्होंने स्वयं को असफल मान लिया हो, निराश हो चुके हो, जिन्होंने ये स्वीकार कर लिया है कि इस जीवन में उनसे कोई कार्य हो ही नहीं पायेगा, वो कुछ कर ही नहीं सकते, किसी कार्य के वो योग्य ही नहीं।

किन्तु ऐसा नहीं है, इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो योग्य नहीं है, कोई ऐसा अक्षर नहीं है जो किसी मन्त्र का भाग ना हो, कोई ऐसी जड़ी-बूटी नहीं है जो औषधि ना हो, कोई ऐसा विष नहीं है जो समय आने पर अमृत ना बन जाए और इसी प्रकार कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं होता।

उसे अयोग्य बनाती है उसकी सोच। इसीलिए स्वयं को जानो, जान जाओगे कि आप क्या हो?

अपने अंतर्मन को जगाए आप देखेंगे कि जिस संसार की नींव ही बनी है “आशा” से उस संसार में निराशा, हताशा और हार जैसा कोई भाव अस्तित्व ही नहीं रखता। राधे-राधे!

Radha Krishna Serial Love Quotes In Hindi

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

जब जब धरती पर पाप बढ़ता है, धर्म की हानि होती है तब-तब मैं आता हूँ। ये तो आप सब जानते है किन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों मैं इस धरा का जीव बन के ही अवतरित हुआ? क्यों मैं मनुष्य के रूप में आपके बीच में रहता हूँ? आज बताता हूँ।

संसार में पाप और पुण्य संतुलन में चलते है किन्तु जब पाप सीमा से आगे बढ़ जाता है, मुझे यहां आना ही होता है। कारण – कारण ये है कि आप मुझे भुला देते है, चौंकिये मत मैं आप ही में बसता हूँ, बस आप स्वयं के भीतर बसे परमात्मा को भूलने लगते है।

इसीलिए मुझे आना पड़ता है आपको ये बताने कि सारी शक्ति आप में ही समाहित है। पर आप क्या करते है?

मेरा सम्मान करते है, मुझे पूजते है, मुझसे शक्ति मांगने लगते है, भांति-भांति की इच्छाएं मेरे सामने रखते है। मुझे आपकी श्रद्धा से कोई आपत्ति नहीं है, मुझे आपत्ति है उस भाव से जो आपको दुर्बल बनाता है।

परमात्मा में श्रद्धा रखिये किन्तु स्वयं की आत्मा पर भी विश्वास रखिये। क्योंकि इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आप नहीं कर सकते।

हर नर में नारायण बसते है और हर नारी में लक्ष्मी। तो पहचानिये अपने भीतर के नारायण को और बदल दीजिये समय के इस चक्र को मुझे प्रसन्नता होगी कि मेरे अवतार लेने का वास्तविक प्रयोजन आपको समझ आया।

तो शंका त्याग कर शंकर बन जाइये अन्यथा कंकड़ के समान रहना होगा। राधे-राधे!

कभी आपने सोचा है इस संसार में हम सबसे अधिक किससे जुड़े है? अब कोई कहेगा माता-पिता, कोई कहेगा मित्र, कोई कहेगा पत्नी, तो कोई कहेगा संतान।

नहीं, यदि इस संसार में हम किसी से जुड़े है तो वो है “समय।” समय ही हमारा भूत है, समय ही हमारा वर्तमान है और समय ही हमारा भविष्य और हम क्या करते है?

सबसे अधिक जुड़े समय को, सबसे बहुमूल्य सम्पत्ति को हम नष्ट कर देते है। कोई भविष्य के ऊंचे सपनों को बुनता है, कोई बीते कल को कोसता है।

किन्तु तनिक सोचिये बीता कल आपके सोच-विचार करने से बदलने नहीं वाला और भविष्य के विषय में सोच-विचार करके यदि आप अपना वर्तमान नष्ट कर देते है, तो आपका भविष्य भी बीते कल की भांति ही होगा।

इसीलिए आज के विषय में सोचिये उसे उत्तम बनाये, आपका भूतकाल और आपका भविष्य अपने आप उत्तम हो जाएगा। राधे-राधे!

अक्सर आपके बड़े-बूढ़ों ने आपसे कहा होगा कि ये संसार दुःख का मूल है और ईश्वर भक्ति उस दोष से दूर जाने का मार्ग है।

किन्तु सोचिये यदि ये संसार दुःख का सागर होता तो क्या नियति आपको यहां जन्म लेने देती? क्या ईश्वर यहाँ पर अवतार लेते?

जब समस्याओं पर हमारा वश नहीं चलता, हम आरोप लगाते है इस संसार पे, यहाँ के लोगों पे, सोचते है कि काश वो यहाँ पर आया ही ना होता।

एक किसान बंजर धरती पर जाता है और अपने परिश्रम से उसे लहलहाते खेत में परिवर्तित करता है। एक दर्जी जिसके पास एक सामान्य सा वस्त्र आता है अपने परिश्रम से उसे एक सुन्दर वेश में परिवर्तित कर देता है।

आप भी परिश्रम कीजिये, ये महत्त्वपूर्ण नहीं है कि आप किस संसार में आये? ये महत्वपूर्ण नहीं है कि आप यहाँ कैसे आये?

यदि कुछ महत्त्वपूर्ण है तो वो है कि जब आप गए तब आप इस संसार को कैसा छोड़ के गए तो ये सोच के जिये कि जो किसी के लिए नर्क है उसे किसी का स्वर्ग बना कर निकलोगे तो आपका जीवन और आपका संसार दोनों धन्य हो जायेंगे। राधे-राधे!

हम सबको कभी ना कभी तो क्रोध आता ही है और आएगा भी। मनुष्य है, इन्हीं भावों से हम जुड़े है। किन्तु ये क्रोध क्यों आता है, कभी सोचा है आपने?

ये क्रोध तब आता है जब हमारे मन के अनुसार कुछ ना हो जैसे कभी कोई हमारी बात ना माने, या कभी हमें पराजय प्राप्त हो जाये।

किन्तु इन सारी परिस्थितियों में आधार एक ही है – कि कहीं ना कहीं, किसी ना किसी स्थान पर हम दुर्बल है। क्रोध जन्म लेता है हमारी दुर्बलता से और फिर वो हमारी सबसे बड़ी दुर्बलता बन जाता है।

यदि क्रोध को वश में ना रखा जाए तो “भ्रम” जन्म लेता है, यदि भ्रम को वश में ना रखा जाए तो विवेक “व्याग्र” होने लगता है और यदि व्याग्रता को वश में ना किया जाए तो व्यक्ति का “तर्क” ही नष्ट हो जाता है, सोचने-समझने की शक्ति शून्य हो जाती है और फिर उस व्यक्ति का पतन हो जाता है।

इसीलिए अपने क्रोध पर वश में रखे और अपने मन को शांत होने के लिए कहे। राधे-राधे!

हम अपने संबंधों के साथ जीते है, उत्सव मनाते है, खेलते है, खाते है, आनंद मनाते है। किन्तु जब कोई प्रिय हमसे दूर चला जाता है, इस संसार से चला जाता है तब हम दुर्बल हो जाते है, सदा दुखी रहते है, क्या ये होना चाहिए?

इस प्रकृति को देखिये – वृक्ष पत्तों के झड़ने से शोक नहीं मनाता, वो नए पत्तों के आने का स्वागत करता है।

कल आप भी किसी के स्थान पर आये थे और कल आपके स्थान पर भी कोई और अवश्य आएगा। क्योंकि ये परिवर्तन है, ये इस प्रकृति का नियम है, इसमें शोक कैसा?

जो छूटा उसका शोक मनाने के स्थान पर जो मिलेगा या जो आपके पास है उसका आनंद उठाइये। राधे-राधे!

Radhe Radhe Images And Quotes In Hindi

हमारे पास अक्सर बहुत लोग आते है, कुछ को हम समय देते है, कुछ का हम तिरस्कार करते है। किन्तु तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए।

किसी व्यक्ति के आपके पास आने के तीन मुख्य कारण होते है – भाव, अभाव और प्रभाव।

यदि कोई आपके पास प्रेम भाव से आये तो उसे प्रेम दे, सम्मान दे।

यदि कोई आपके पास अभाव में आये तो उसकी आवश्यकता समझे और जितना हो सके स्वयं से उसकी सहायता करे और

यदि कोई आपके पास प्रभाव के कारण आये तो भी उसे समुचित सम्मान दे। तो खुदको भाग्यशाली समझे कि कोई आपके प्रभाव में है।

किन्तु तिरस्कार, तिरस्कार कभी ना करे, तिरस्कार जन्म देता है “कुंठा” को और कुंठा किसी को भी आपका शत्रु बना देती है। इसलिए मित्र बनाये, आनंद ले और मेरे साथ कहे राधे-राधे!

लोग सदैव मुझसे ये प्रश्न करते रहते है कि मित्रता का मतलब क्या है, इस प्रेम का मतलब क्या है? और मैं, मैं बस मुस्कुराता हूँ, क्योंकि ये तो ऐसा प्रश्न हुआ जैसे कोई पूछे कि अनर्थ का अर्थ क्या है?

अब जब अनर्थ हो ही गया तो उसका अर्थ क्या? उसी प्रकार वो मित्रता क्या जिसमें आपका कोई मतलब हो, वो प्रेम क्या जिसमें आपका कोई स्वार्थ हो।

ये दो भाव ऐसे है जिसमें आपको कुछ चाहिए नहीं होता, बस देना होता है। आपका समय, आपकी भावनाएं, आपका सुख।

कुछ मांगने के लिए करोगे तो वो मित्रता कैसी? कुछ पाने के लिए करोगे तो वो प्रेम कैसा? वैसे भी देखा जाये जो प्रेम करते है उन्हें कुछ पाने की आवश्यकता ही नहीं और जिसके पास ढाई अक्षर वाला ये प्रेम शब्द हो उसके पास तो इस संसार का सबसे बड़ा कोष है तो इस कोष को बढ़ाइए और मेरे साथ कहिये राधे-राधे!

हम मनुष्य साथ रहते है। आनंद, पीड़ा मिल-जुल कर बांटते है, समय पड़ने पर सहायता देते है, सहायता लेते भी है। किन्तु क्या सदा सहायता लेना उचित है? अब आप में से कुछ कहेंगे बिलकुल उचित है, इसमें बुरा ही क्या है?

मनुष्य ही तो मनुष्य के काम आएगा। बिल्कुल उचित कहा आपने, किन्तु सदा के लिए सहायता लेना उचित नहीं है। कारण – यदि बात-बात पर सहायता लेने का अभ्यास हो गया तो आप स्वयं दुर्बल होते जायेंगे।

स्वयं का एक मार्ग बनाना छोड़, आप बात-बात पर दूसरों से सहायता मांगेंगे।दूसरी बात – सहायता के साथ जुड़ा आता है “उपकार का भार”, तो जिससे सहायता ली है, उसके समक्ष झुक कर रहना होगा। इसीलिए संकट में भी सोच-विचार करके सहायता ले।

क्योंकि संकट तो कुछ दिनों पश्चात निकल जायेगा, किन्तु उस उपकार के ऋण का भार जीवन भर आप पर रहेगा। राधे-राधे!

जबसे मनुष्य का जन्म हुआ है, जन्म हुआ है “जान-पहचान” का और आज के युग में तो व्यक्ति का मूल्यांकन ही इससे किया जाता है कि इसकी पहचान किससे है? उसकी पहचान कहाँ तक है, क्यों?

आपके आस-पास भी ऐसे कई लोग होंगे जो पहचान के बल पर आपको बना देते है। ऐसे कई लोग होंगे जो पहचान से काम पा लेंगे, धन अर्जित कर लेंगे। किन्तु आप तनिक सोचिये, क्या ये ठीक है?

पहचान से मिला काम आपके साथ तब तक रहेगा जब तक आपके उनसे मधुर संबंध होंगे, संबंधों में खट्टास आयी और काम निकल गया हाथ से। तो अब क्या किया जाये?

इसका उत्तर है “काम” अपना काम पूरे मन से करो, अपना काम निश्छल से करे, क्योंकि पहचान से मिला काम अधिक समय तक नहीं टिकेगा। किन्तु काम से मिली पहचान युगों-युगों तक टिकेगी। राधे-राधे!

अक्सर आपने आपके माता-पिता, आपके हितैषी, आपके शुभचिंतकों के मुँह से सुना होगा इसे कुदृष्टि लग गयी है, इसकी कुदृष्टि उतारो, ये मत करो नहीं तो कुदृष्टि लग जाएगी, ऐसा श्रृंगार ना करो वो मत पहनो नहीं तो कुदृष्टि लग जाएगी और कुछ, कुछ तो इस कुदृष्टि का उपचार भी कर लेते है। मिर्च का धुआं जलाते है, तेल की बाती से कुदृष्टि उतारते है, काला टीका लगाते है, क्या-क्या करते है।

उचित है, किन्तु मैं, मैं कुदृष्टि को नहीं मानता, मैं मानता हूँ यदि आपका मन अच्छा हो तो कोई भी कुदृष्टि आपको किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुंचा सकती। अँधियाँ भी केवल उन्हीं घरों में धुल भर पाती है जिन घरों में खिड़कियों के परदे दुर्बल होते है। बवंडर भी केवल उन्हीं दीवारों को गिरा पाते है जो नींव से कमज़ोर होते है और आपके व्यक्तित्व की नींव है “आपकी सोच”, “आपका दृष्टिकोण”

एक ही स्थिति है, एक ही स्थान, एक ही घटना को आप सकारात्मक रूप में भी ले सकते है, नकारात्मक रूप में भी ले सकते है, निर्णय आपका है। इस संसार को जैसा सोचोगे वैसा ही पाओगे इसलिए स्मरण रखियेगा अपनी दृष्टि नहीं अपना दृष्टिकोण संभालिये।

क्योंकि जैसा कहा गया है इस संसार में बुरी दृष्टि का उपचार तो है बुरे दृष्टिकोण का नहीं। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे !

Radha Krishna Serial Motivational Quotes In Hindi

बालपन से कई पहेलियाँ सुलझायी होंगी आपने, क्यों? तो आज एक और सुलझा लीजिये, बताइये आपके जीवन में वो कौन सी वस्तु है जो आपका सबसे बड़ा मित्र भी है और सबसे बड़ा शत्रु भी।

समझदार को एक संकेत ही पर्याप्त है, उचित सोचा आपने वो वस्तु है “समय”। क्यों, क्यों समय आपका सबसे बड़ा मित्र और समय ही आपका सबसे बड़ा शत्रु है? उत्तर है – समय का सम्मान, जो व्यक्ति समय का सम्मान करता है वो अपने जीवन के सारे लक्ष्य प्राप्त करता है।

संसार उसकी कला पहचानता है, उसे महत्त्व देता है और जो व्यक्ति समय का महत्त्व नहीं पहचान पाता, नहीं समझ पाता, जाने-अनजाने में उसका अपमान करता है, संसार उसी को भुला देता है।

इसीलिए समय का सम्मान करे, उसे व्यर्थ ना करे क्योंकि अच्छा समय इस संसार को बताएगा कि आपकी वास्तविकता क्या है किन्तु बुरा समय आपको बताएगा कि इस संसार की वास्तविकता क्या है? तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

जीव जन्म लेता है और उसके साथ ही जागती है उसकी “स्मृति” स्मृति बड़ी ही बलशाली किन्तु विचित्र अनुभूति होती है, सदा आपके साथ रहती है, आपके साथ-साथ जो घटता है वो कहीं ना कहीं किसी स्थान पर संचित रहता है।

किन्तु कभी-कभी हम भूल जाते है कि स्मृति हमारी, तो इसमें हमें क्या सहेजना है, क्या मिटा देना है ये हम पर निर्भर करता है। इस जीवन में क्या सहेजना चाहिए? सुख, आनंद के क्षण, वो क्षण जहाँ किसी ने हम पर उपकार किये, वो क्षण जहाँ किसी ने मित्रता निभाई, वो क्षण जहाँ हमने किसी को सुख दिया और हम क्या स्मरण रखते है?

अपने दुःख, पीड़ायें, वो क्षण जहाँ किसी ने हमारे साथ बुरा किया, वो क्षण जहाँ किसी ने शत्रुता निभाई और फिर यही स्मृतियां हमें प्रेरित करती है प्रतिकार के लिए। इसीलिए हमें क्या भूलना है और हमें क्या स्मरण रखना है ये हम पर निर्भर करता है।

इस जीवन में सब कुछ भूल जाइये किन्तु ये अवश्य स्मरण रखिये भूलने वाली बातें याद है, इसीलिए विवाद है। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

कभी बरगद के वृक्ष को देखा है? कितना विशाल होता है, कभी-कभी भय लगता है कि इन भारी डालों का बोझ ये तना सह भी पायेगा या नहीं। भय लगता है कि कहीं ये वृक्ष टूट कर ना गिर जाये

किन्तु नहीं समय पड़ने पर शाखाओं से निकलने वाली ये बेलें धरती की ओर बढ़ती है और फिर स्वयं जड़ बन कर इस वृक्ष को सहारा देती है।

इसी प्रकार जो परोपकार करते है, सत्कर्म करते है उन्हें स्वयं के लिए चिंतित होने की आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि उनके कर्म ढाल बन कर उनकी रक्षा करते है।

इसलिये जीवन में किसी सहारे की नहीं कर्म की चिंता कीजिये। राधे-राधे!

इस प्रकृति ने सभी जीवों की रचना की, भूख की मांग के लिए सबको पेट दिए और व्यवस्था भी की कि हर कोई परिश्रम से अपना पेट भर सके, है ना? और संसार के इन सारे जीवों में केवल “मनुष्य” ही है जिसने धन की मुद्रा का अविष्कार किया।

धन कमाना सीखा और आश्चर्य की बात भी ये है कि मनुष्य ही है जो कभी अपना पेट नहीं भर पाया, क्यों?

इसका कारण है “लोभ” इस संसार में कोई भी जीव हो शाकाहारी या मांसाहारी केवल उतना ही शिकार करता है कि वो जी सके कुछ इकट्ठा नहीं करे और मनुष्य, मनुष्य इकट्ठा करता रह जाता है किन्तु ना मन की भूख मिटा पाता है ना ही अपने शरीर की।

इसीलिए यदि कुछ अर्जित करना है तो शुभ कर्म और नाम अन्यथा इस संसार से भूखे पेट जाना होगा। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

हमारे जीवन में शिक्षक बड़ा महत्त्वपूर्ण है। “शिक्षक” जो हमें जीवन जीने की आवश्यक कला सिखाता है, जीवन जीना सिखाता है और जाने के पश्चात भी नाम कैसे रह पायेगा ये बताता है।

किन्तु यदि कोई ये प्रश्न करे कि हमारे जीवन में सबसे बड़ा, सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षक कौन है? तो कोई कहेगा माँ, क्योंकि इस संसार में माँ से अधिक सीख और कौन दे सकता है? कोई कहेगा अध्यापक, क्योंकि अध्यापक ही है जो हमें शस्त्र और शास्त्र सिखाता है। कोई कहेगा मित्र, किन्तु

इन तीनों में एक समानता है ये पहले आपको सिखाते है और फिर आपकी परीक्षा ले के देखते है कि आप क्या सीखे? किन्तु वास्तविकता में सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षक वो है जो इनसे उल्टा करे।

जो पहले आपकी परीक्षा ले और बाद में आपको सिखाये। या कहो कि परीक्षा देते-देते आप स्वयं ही सीख जायेंगे ये शिक्षक है अनुभव इसलिए अनुभव और अनुभवी को साथ रखेंगे तो इस जीवन में कभी असफल नहीं होंगे। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

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जीवन में समय चाहे जैसा भी हो अपनों का साथ बड़ा आवश्यक होता है। सुख हो तो बढ़ जाता है, दुःख हो तो बंट जाता है। अपनों के साथ समय कब बीत जाता है पता भी नहीं चलता। है ना?

किन्तु सोचिये यदि आपको किसी ऐसे स्थान पर छोड़ दिया जाए जहां आपका कोई संबंधी ना हो, आपका कोई अपना ना हो, कोई मित्र ना हो तो क्या होगा? एक-एक क्षण कितना लम्बा लगने लगेगा? तब तक लगेगा जब तक आप किसी को अपना नहीं बना लेते।

अब प्रश्न ये उठता है कि आपका अपना कौन है? वो संबंधी जिनके साथ आप रक्त से जुड़े है या वो मित्र जिनके साथ आप बालपन से पले-बड़े है या वो सहकर्मी जिनके साथ आप काम करते है। नहीं, अपना वो जो विपत्ति में काम आये।

अपनों की परख समय की कसौटी पर की जाती है। स्मरण रखियेगा अपनों के साथ समय का पता नहीं चलता किन्तु समय के साथ अपनों का पता अवश्य चलता है। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

कुछ पक्षियों को देखा है? जीवन भर घोंसला बनाते रहते है। यहां से डाली लेकर, वहां से तिनका लेकर, सदा इस कार्य में रहते है कि अपना घोंसला बना सके और इस कार्य में इतना खो जाते है कि स्वयं के पंखो के अस्तित्व के विषय में भूल ही जाते है।

भूल जाते है कि उनके पास एक विशाल आकाश भी उड़ने के लिए और फिर ये जीवन उस घोंसले की आहुति चढ़ जाता है।

हम मनुष्यों के साथ भी यही होता है जीवन जीने के लिए धन कमाने में इतने व्यस्त हो जाते है कि भूल ही जाते है कि हमें जीवन जीना भी है। धन, जीवन जीने के लिए होता है। जीवन, धन कमाने के लिए नहीं।

तो आप केवल घोंसला बनाते मत रहिये अपने पंख फड़फड़ाइये और उड़ान भरिये इस खुले आकाश में। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

एक चींटी का जीवन बहुत ही कम होता है। दो दिन, अधिक से अधिक एक सप्ताह बस। कितने कम भोजन की आवश्यकता होती है इसे। किन्तु फिर भी वो चलती रहती है, कर्म करती रहती है।

अपनी आने वाली पीढ़ियों की विरासत के लिए करना होगा। कर्म करते रहिये, चलते रहिये।

कुछ ना मिला तो चलने में सभ्यासत हो जाओगे, लक्ष्य ना मिला तो एक सुगढ़ यात्री तो बन पाओगे। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

मनुष्य की एक विशेष प्रवृति होती है वो कभी स्वयं से संतुष्ट नहीं रहता, कभी स्वयं से प्रसन्न नहीं रहता, जो है उससे अधिक पाना चाहता है, जो पा लिया उससे आगे बढ़ना चाहता है, अपने जीवन में बदलाव, परिवर्तन लाना चाहता है और ये प्रवृति संसार में सबसे महान है।

क्योंकि इसी प्रवृति के चलते संसार में विकास होता है। किन्तु इस बदलाव के लिए मनुष्य उसकी खोज में रहता है जो उसके जीवन में बदलाव ला सके, उसे मार्ग दिखा सके, उसके जीवन में परिवर्तन ला सके और इसके लिए मनुष्य संसार भर में उसे खोजता है जो उसके पास है।

बताइये कौन? यदि कोई आपका जीवन बदल सकता है तो दर्पण देखे वो आप स्वयं है जो आपका जीवन बदल सकते है, वो आप स्वयं है जो स्वयं को मार्ग दिखा सकते है, जीवन में बदलाव ला सकते है, परिवर्तन ला सकते है।

इसीलिए पहचानिये अपने भीतर की शक्ति को और विश्वास कीजिये इस संसार में आपसे अधिक शक्तिशाली और कोई नहीं है। जीवन बदल जायेगा और अन्धविश्वास का नहीं आत्मविश्वास का हाथ थामिए आपकी समस्याएं स्वतः दूर हो जाएंगी। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

जीवन में कुछ कर दिखाना है, आकाश की वो सीमा छूनी है जिसे छूने के विषय में आप कभी सोच भी नहीं सकते। तो अपने भीतर ये तीन गुण अर्जित करिये।

पहला – अपने लक्ष्य को पाने की “चाह”, “लगन” ये आपसे वो करवा सकता है जो आप कभी नहीं कर सकते।

दूसरा – “साहस” संकट उठाने की क्षमताये आपसे वो करवा सकता है जो आप करना चाहते है। और

तीसरा है – “अनुभव” अनुभव आपको ये बताएगा कि आपको करना क्या चाहिए? 

तो जिसने चाह, साहस और अनुभव इन तीन गुणों की तिकड़ी पा ली उनके लिए इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो वो ना पा सके। वो सदा प्रसन्नता से कहेंगे राधे-राधे!

Awesome Quotes In Hindi Radhe Radhe

“स्वप्न” और “लक्ष्य” कितने समान लगते है। इन दोनों की व्यक्ति कल्पना करता है। इन दोनों को व्यक्ति पाना चाहता है और ये दोनों पूर्ण तो व्यक्ति स्वयं को भाग्यशाली भी समझता है।

किन्तु इन दोनों में अंतर है, अंतर ये कि स्वप्न के लिए बिना मेहनत की नींद चाहिए और लक्ष्य के लिए बिना नींद की मेहनत।

जो व्यक्ति स्वप्न देखने में रह जाता है उठने के पश्चात उसके हाथ खाली रह जाते है और जो व्यक्ति मेहनत करता है सोते समय उसके हाथ उसका लक्ष्य होता है।

इसलिए यदि स्वप्न भी देखो तो लक्ष्य समझ के, परिश्रम से और प्रेम से बोलो राधे-राधे!

इच्छा, निर्णय और निश्चय ये शब्द हमने हमारे जीवन में कई बार सुने, है ना? जीवन में बहुत बार बहुत कुछ पाने की इच्छा होती है। किन्तु क्या केवल इच्छा करने से कुछ बदलता है, कुछ प्राप्त होता है?

बंजर धरती पर रहने वाले व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसे मीठा जल मिल जाये किन्तु उसे नहीं मिलता। जिसने कुंआ खोदने का निर्णय कर लिया उसे धरा खोदने के लिए कुदाल मिल ही जाती है और जो निश्चय कर चुका है उसे देर-सवेर मीठा जल प्राप्त हो ही जाता है।

इसलिए जीवन में केवल इच्छा ना करे, निर्णय करे और फिर निश्चय सब मिलेगा। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

दीपक जलाने का कार्य कितना सुखमय होता है, प्रकाश की ये लौ मानो भीतर जाकर मन में उल्लास भर देती है। ये मैंने क्या कर दिया, मैंने इसे बुझा क्यों दिया? जबकि इसी से मैंने अन्य दीयों को जलाया है।

क्योंकि जब तक ये तीली अन्य बातियों को जला रही थी तब तक ये जल रही थी। किन्तु जब इसने ऐसा करना छोड़ दिया इसे स्वयं बुझना पड़ा, समझे?

जीवन में इसी प्रकार प्रकाश देने का नाम है – जीवन में शुभ कर्म करोगे, परोपकार करोगे, किसी की सहायता करोगे तो जीवित रहोगे और जिस दिन ये करना बंद कर दिया श्वास लेने के पश्चात भी मृत समान होंगे।

इसलिए जब तक श्वास है “आशा” रुपी प्रकाश का संचार करते रहिये, विश्वास कीजिये मृत्यु के पश्चात भी अमर रहेंगे। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

जबसे जीव अस्तित्व में आये है तबसे एक और शब्द अस्तित्व में आया है “संघर्ष” जन्म लेते ही व्यक्ति को जीवन जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता है। तो कभी जो प्राप्त किया है उसे बचाने के लिए संघर्ष करता है। किन्तु सबका एक उल्हाना होता है कि संघर्ष करते समय कष्ट बहुत होता है।

अब योद्धा है तो प्रहार तो सहने पड़ेंगे ही, तैरना सीखना है तो जल में प्रवेश करना होगा ही। उन्हीं के पाँव में छाले पड़ते है जो नित चलते है, जो चलते है वो अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुँचते है।

इसलिए स्मरण रखियेगा जीवन तभी तक है जब तक कर्म करोगे तो संघर्ष करते रहिये, कष्ट को भूल जाइये और प्रेम से मेरे साथ कहिये राधे-राधे!

मनुष्य सदा सोचता है “फल” के विषय में कि मैं जो करने जा रहा हूँ उसका फल क्या होगा, उसका परिणाम क्या होगा? पर इसकी चिंता क्यों?

क्योंकि कर्म यदि शुभ हो तो परिणाम बुरे हो ही नहीं सकते। शुभ की इच्छा से कार्य करने वालो को फल की चिंता कैसी?

जो फूल बेचते है उन्हें कभी-कभार कांटे अवश्य चुभ जाते है किन्तु सुगंध उनके हाथों में रह ही जाती है। हीरे की खोज में कोयले की खान में उतरे व्यक्ति पर कालिक भले ही लग जाये किन्तु हाथों में हीरा अवश्य लगता है।

इसलिए शुभ भावना से कर्म कीजिये परिणाम शुभ ही होंगे। तो प्रेम से बोलो राधे-राधे!

Life Radhe Radhe Quotes In Hindi

मन, मनुष्य, मान इन तीनों का प्रारम्भ मन से ही होता है, है ना? किन्तु आज हम बात करेंगे “मान” के विषय में। मान वो भाव है जो हमारे मन को संतुष्टि देता है, इस पात्र में भरे जल की भांति। जो जल इस इस पात्र के होने का कारण इसका अस्तित्व बनाये रखता है।

अब मान से बनता है “स्वाभिमान” और “अभिमान” और इन दोनों में बहुत अंतर है, जो जल इस पात्र के भीतर समाया है वो है “स्वाभिमान”, जो हमारे मन का संबल है, सहारा है जो इस पात्र के भीतर ठंडा रहता है और पीने वाले को भी ठंडक पहुंचाता है और जो जल पात्र से बाहर छलके वो है “अभिमान” जो बाहर की ताप से भाप बन कर उड़ जाता है।

स्मरण रखियेगा स्वाभिमान आपको बनाये रखता है आपको शक्ति देता है और अभिमान आपको नष्ट कर देता है। तो क्या बनना चाहेंगे आप स्वाभिमानी या अभिमानी? निर्णय आपका है, राधे-राधे!

गिरने में कोई आपत्ति नहीं है, बस गिरो तो उस बूँद की भांति जो इस संसार को नया जीवन देती है और उस उठने में भी कोई अच्छाई नहीं है जिसमें किसी और के काँधो पर पाँव रख कर उठा जाए।

अपने अस्तित्व को खोने में कोई बुराई नहीं है पर उस बीज की भांति जो एक नए वृक्ष को अस्तित्व में लाता है परन्तु उस अस्तित्व को भी बनाने का क्या लाभ जो किसी और के स्वप्न को बिखेर के बने।

क्रोध में कोई बुराई नहीं है यदि वो किसी दुष्ट को मार्ग पर ले आये परन्तु उस मोह उस दया का क्या लाभ जो आपको दुर्बल बना दे।

अर्थात अच्छा या बुरा कर्म नहीं होता बस वो कब, किस स्थान पर और कैसे किया जाये वो निर्णय अच्छा या बुरा होता है। यदि सही समय पर करो तो वो “गुण” है अन्यथा वो “अवगुण” जो भीतर तक आपको खाता जाये। राधे-राधे!

आज मैं आपसे तीन प्रश्न पूछूंगा।

तो पहला प्रश्न – ऐसा कौन है जिस पर लगातार प्रहार करने के पश्चात भी वो मुस्कुराये और आपको सुख दे? आपका उत्तर होगा – धरती या वृक्ष।

दूसरा प्रश्न – ऐसा कौन है जो बिना आपके कुछ कहे सब जान जाता है, सब समझ जाता है और फिर निस्वार्थ भाव से आपकी सहायता करता है? अब आपका उत्तर होगा – भाई या मित्र। और

तीसरा प्रश्न – ऐसे कौन से भगवान है जो स्वयं विष का घूंट पी कर आपको जीवन का अमृत प्रदान करते है? अब आपका उत्तर होगा – महादेव।

यदि आपके उत्तर ये है तो आपके उत्तर गलत है। इन सारे प्रश्नों का एक ही सही उत्तर है, और वो है – “माँ”

संतान करते समय उन्हें कितनी लात मारी किन्तु फिर भी वो मुस्कुरा के वो आपको आशीष देती रही, आपके बिना कुछ कहे वो सब जान जाती ही है और इस जीवन की कठिन परिस्थितियों के विष का घूंट पी कर आपको सुख का अमृत देती है।

इस जीवन में आप कुछ भी कर लीजिये अपनी माँ का ऋण कभी चुका नहीं पाएंगे। यदि कुछ कर सकते है तो जीवन के आनंद में, उद्भव में, और धन्यवाद में अपनी माँ को स्मरण रखिये और मेरे साथ प्रेम से कहे राधे-राधे!

शीत ऋतु की संध्या में इन जलती हुई लकड़ियों पर हाथ तापना किसे नहीं भाता? कितने प्रहर बीत जाते है लकड़ियों को चिटकाते, घुमाते पता ही नहीं चलता। ये लकड़ियां पहले जलती है फिर हमें ताप देती है फिर राख बन जाती है।

बताइये, ये अग्नि उतपन्न कहां से होती है? उत्तर सरल है इन लकड़ियों में से फिर बताइये ये राख कहां से उतपन्न होती है? उत्तर वही है इन्हीं लकड़ियों में से। अब अग्नि और राख दोनों लकड़ियों से उतपन्न होती है।

अब सोचिये, अग्नि जो इन लकड़ियों को जलाती है और राख, और राख वो जो इस अग्नि को बुझा देती है। कुछ समझे, आपकी ऊर्जा आपके भीतर से उतपन्न होती है और नकारत्मकता रुपी राख उसका निर्माण भी आप ही के भीतर से ही होता है।

तो अपने भीतर के प्रकाश को जगा कर इस संसार को प्रकाशित करना चाहते है या अपने भीतर की नकारात्मकता को जगा कर इस संसार में अंधकार फैलाना चाहते है। निर्णय आपका है, राधे-राधे!

कभी-कभी आपके मन में ये प्रश्न नहीं उठता कि इस संसार में ऐसा क्या है जिसे पाना असम्भव है? उठता है, मेरे मन में भी ये प्रश्न उठता है फिर मैं विचार करता हूँ क्या है इस संसार में ऐसा है जिसे पाना असम्भव है?

धन – नहीं, यश – नहीं, सम्मान – नहीं, प्रेम – नहीं। तो फिर क्या है ऐसा जिसे पाना असम्भव है? विचार कीजिये। उत्तर है – अपनी स्वयं की भूल, अपना स्वयं का दोष जो कभी किसी को नहीं मिलता और यदि किसी को मिल भी जाए तो वो व्यक्ति अपनी भूल स्वीकार करना नहीं चाहता।

किन्तु जो व्यक्ति अपनी भूल स्वीकार करता है, अपना दोष स्वीकार करता है, संसार में कुछ भी पाने के लिए कोई उसके सामने कोई भी बाधा नहीं रहती।

इसलिए आत्मविश्वास अवश्य रखिए, प्रयास करते रहे कि आपसे कोई भूल ना हो। किन्तु आत्म-मंथन भी और यदि आपसे कोई भूल हो भी जाये तो उसे स्वीकार करे, उसे सुधारने का प्रयास करे। आपका जीवन अधिक आनंदमय हो जायेगा। राधे-राधे!

Radhe Radhe Quotes In Hindi One Line

 संसार में आपको ऐसे कई लोग मिलेंगे जो आपको बताएंगे कि “क्या करना है।” किन्तु उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात ये है कि “क्या नहीं करना?” आज मैं आपको ऐसी ही तीन बातें बताना वाला हूँ जो आपके जीवन में नहीं करनी है।

पहली बात – आनंद में कभी वचन मत दो। आनंद आपके तर्क को हर लेता है और फिर आनंद में दिया गया ये वचन बाद में गले की फास बन जाता है।

दूसरी बात – कभी भी क्रोध में उत्तर मत दो। क्रोध आपके विवेक को खा जाता है, भविष्य दृष्टि को बाधित कर देता है और फिर कुछ क्षण के लिए आया ये क्रोध, इसमें दिया गया उत्तर बाद में जीवन भर के लिए प्रश्न बन जाता है और

तीसरी बात – कभी भी दुःख में निर्णय मत लो। दुःख आपके सोचने-समझने की क्षमता को सीमित कर देता है और दुखी मन से लिए गए निर्णय सदा दुःख ही देते है।

सच कहा जाये तो वचन, उत्तर और निर्णय कभी भी जीवन में सोच विचार करके ही लेने या देने चाहिए। सोच-विचार करके कार्य करोगे तो इस संसार में किसी भी समस्या का हल बुझना नहीं पड़ेगा। राधे-राधे!

कभी-कभी आपके मन में ये प्रश्न तो उठता होगा कि ये “प्रेम” क्या है? कैसे समझा जाये इस प्रेम को? उत्तर बड़ा ही सरल है जब तक आप प्रेम करोगे नहीं तब तक आप प्रेम को समझोगे नहीं।

यदि रत्न बन कर मुकुट में सजना हो तो हीरे को तराशे जाने का दुःख तो सहना ही पड़ता है। प्रेम का उचित अर्थ समझना हो तो मोह को त्याग के समर्पण करना ही होगा।

जो प्रेम किसी को पाने के लिए किया जाए वो प्रेम, प्रेम नहीं “मोह” है। इसलिए समर्पण कीजिये अपना, अपने अहंकार का, अपने अस्तित्व का, मोह का और देखिये आपका प्रेम स्वयं आपके साथ होगा। राधे-राधे!

जीवन में कभी भी लक्ष्य को प्राप्त करना हो तो व्यक्ति दो भाग साथ लेकर चलता है। पहला – अपने लक्ष्य को पाने का निश्चय और दूसरा – अपने लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग, सब यही करते है।

किन्तु सब अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते, क्यों? क्योंकि लक्ष्य ना मिल पाने की स्थिति में व्यक्ति को कुछ बदलना होता है। कुछ अपना निश्चय बदल लेते है, कुछ अपना मार्ग।

जो अपना मार्ग बदल कर प्रयास करते है उन्हें सफलता प्राप्त हो ही जाती है। किन्तु अपना निश्चय बदलने वाले सफलता का स्वाद कभी नहीं चख पाते।

इलसिए अपना निश्चय कभी मत बदलिए, क्योंकि निश्चय खो देने पर चन्द्रमा भी पूर्णिमा के दिन ग्रहण पा जाता है। अपना निश्चय बनाये रखे, आपको सफलता अवश्य मिलेगी। राधे-राधे!

अपने महल के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़ा व्यक्ति उसे भी एक “भय” होता ही है। भय उस महल के नींव के हिल जाने का, भय अपना पतन हो जाने का और इसी कारण से उस ऊंचाई का सम्पूर्ण आनंद वो ले नहीं पाता।

किन्तु क्या कभी आपने किसी वृक्ष की डाली पर बैठे किसी पंछी को देखा है? उस डाली के हिल जाने से उसे गिर जाने का भय नहीं होता, क्यों? क्योंकि उसे अपने पंखों पर विश्वास है।

इसी प्रकार हम में से अधिकतर लोग किसी ना किसी सहायता से ऊंचाई पर पहुंचे है। किसी की सहायता से सफलता प्राप्त करते है। किन्तु सफलता का आनंद केवल वही प्राप्त कर सकते है जिन्हें गिरने का भय ना हो।

इसीलिए किसी की सहायता पर नहीं, स्वयं के सामर्थ्य पर विश्वास कीजिये। राधे-राधे!

“पाना” और “खोना” दोनों जीवन के महत्त्वपूर्ण भाग है। जीवन भर व्यक्ति कुछ पाता है तो कुछ खोता है।

कभी धन खोता है तो कभी सम्मान, कभी मित्र खोता है तो कभी अभिमान। किन्तु खोना बुरी बात नहीं है, क्योंकि खोने के साथ ही वो आपको एक अमूल्य सीख दे जाता है कि कैसे उसे दोबारा ना खोया जाए।

इसलिए यदि कुछ गंवा दिया तो उससे मिली सीख ना गंवाए। क्योंकि उसी सीख की सहायता से आप अपना खोया हुआ पुनः पा सकते है। राधे-राधे!

Radhe Radhe In Hindi

जीवन में कुछ भी पाना हो तो “सोच” और “कर्म” बड़े आवश्यक होते है। किन्तु क्या केवल सोच से, क्या केवल कर्म करने से आपको सफलता प्राप्त होगी?

नहीं, कुछ लोग सोचते रह जाते है कर्म नहीं कर पाते और इसी कारण से उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती। कुछ लोग बिना सोचे-समझे कर्म करते रह जाते है उन्हें भी सफलता प्राप्त नहीं होती।

स्मरण रखियेगा वृक्ष को काटना हो तो कुल्हाड़ी के लगातार प्रयास करने के साथ ही कुल्हाड़ी किस दिशा में मारी जानी चाहिए इसका ध्यान रखना पड़ता है।

सोच और कर्म इनका ठीक से सम्मिश्रण करेंगे तो अवश्य ही सफलता मिलेगी। राधे-राधे!

हम मनुष्य कितने ढीठ होते है, एक बार लक्ष्य पर दृष्टि साध ली तो उसे पाने के लिए जी-जान लगा देते है। किन्तु उस लक्ष्य को पाने की आतुरता में उस मार्ग का आनंद लेना ही भूल जाते है।

स्वास्थ्य को दाव पर लगाते है धन कमाने के लिए और फिर वही धन गंवा देते है स्वास्थ्य को पुनः सुधारने के लिए, बताइये।

देखिये “चाह” बुरी बात नहीं है किन्तु चाह को पूर्ण करने की चाह में उस मार्ग का आनंद लेना भूल जाना ये तो मूर्खता है। कभी-कभी पूर्ण पाने की चाह में व्यक्ति सब कुछ गंवा देता है।

भूल जाता है कि आधा चन्द्रमा अधिक सुंदर होता है। जो नहीं है उसे पाने का प्रयास आप अवश्य कीजिये। किन्तु जो है उसका सम्पूर्ण आनंद लेने में वंचित मत रहिये। राधे-राधे!

हम सब जीवन में स्वयं के लिए सर्वश्रेष्ठ ही सोचते है। सबसे अच्छी सुविधा पाना चाहते है, सबसे अधिक सम्मान पाना चाहते है। परन्तु क्या सबके लिए ये पाना सम्भव है? हां, क्यों नहीं बस बाधा है “समय”।

हमारा जीवन स्थायी नहीं है, इसलिए यदि समय का सदुपयोग करोगे तो तनिक सरलता होगी।

अब देखिये ना जिसे स्वप्न देखना अच्छा लगता है उसके लिए रात छोटी पड़ जाती है। जिन्हें स्वप्न पूर्ण करने होते है उनके लिए दिन छोटा पड़ जाता है, जो सम्मान पाना चाहते है उनके लिए परोपकार छोटा पड़ जाता है और जो ज्ञान पाना चाहते है उनके लिए अध्ययन।

जीवन में लक्ष्य को पाना हो तो समय का प्रबंधन ठीक होना ही चाहिए, स्मरण रखियेगा। राधे-राधे!

 कहते है जीवन में मेल-मिलाप अत्यंत आवश्यक है। संबंधों का आधार भी बनता है, व्यापार भी चलाता है। किन्तु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है “व्यवहार” अब इस विषय में सोचिये।

आपके जीवन में कौन आपसे मिलेगा ये निश्चित करता है “समय” आप अपने जीवन में किनसे मिलना चाहेंगे ये निश्चित करता है आपका “हृदय” और आप जिनसे मिले उनके हृदय में आप कब तक बने रहेंगे ये निश्चित करता है आपका “व्यवहार”।

अपना व्यवहार शुभ रखिये सब शुभ होगा। राधे-राधे!

ये पुष्प देख रहे है आप? ये वही पुष्प है जिसका जीवन इस डाली पर आरम्भ हुआ। पहले कलिका बन कर फूटा फिर धीरे-धीरे मुख खोला फिर अपनी पंखुड़ियों का विस्तार किया।

देखने वालों की आँखों में प्रशंसा दी, मधु के लिए तितलियों को ललचाया और फिर डाली से टूटकर नीचे गिरा हुआ पाया। क्यों, नियति ने ऐसा क्यों किया, सोचिये? क्योंकि उस डाली पर टिके रहना इस पुष्प के जीवन का ध्येय कभी था ही नहीं।

अब या तो ये पुष्प देवताओं के मस्तक पर सुशोभित होगा, या किसी स्त्री के आभूषण में गूंथा जायेगा या किसी के प्रेम प्रदर्शन का माध्यम बनेगा। देखिये, जीवन में लक्ष्य को पाना है तो यात्रा से भय नहीं होना चाहिए।अपना अस्तित्व बनाना है तो उनकी छाँव से दूर जाना ही पड़ेगा जिन्होंने आपको अस्तित्व में लाया। यही जीवन की निरंतरता है राधे-राधे!

Radhe Shyam Quotes In Hindi

हम सबके जीवन में कभी ना कभी पत्थरों का योग होता ही है। ये संसार हम पर कभी ना कभी पत्थर बरसाता ही है।

कभी हमें बुरा समझ कर, कभी हमें असफल मान कर, कभी हमें बुद्धिहीन मान कर, कारण बहुत सारे है। किन्तु इन पत्थरों से हमें चोट खानी है या नहीं ये हमारे हाथ में है।

या तो आप इन पत्थरों से चोट खाकर आंसुओं में डूबे रह सकते है या यदि आप चाहे तो इन पत्थरों से सेतु बना कर समस्या का सागर पार कर सकते है।

निर्णय आपका है, ये पत्थर प्रतीक है हमारी निंदा का, हमारी आलोचना का जो इस आलोचना को नकारात्मक ले गया वो केवल कष्ट ही पायेगा और जिसने इस आलोचना को विकास का आधार बना लिया वो सफलता के शिखर चढ़ेगा।

इसलिए स्मरण रखियेगा आलोचना आपका शत्रु नहीं आपका सबसे बड़ा मित्र है। राधे-राधे!

मीठा पानी सबको भाता है, परन्तु खारा पानी किसी को नहीं भाता। अब सोचने वाली बात ये है कि “मोती” समुन्द्र की गहराईयों में ही बनता है।

खारे पानी के मध्य में रहकर, हर क्षण भक्षकों से टकरा कर, अपने अस्तित्व को दाव पर लगा कर ही सीप मोती प्रदान कर पाती है। कभी सोचा है क्यों?

क्योंकि बिना संकटों का सामना किये, बिना विषम परिस्थितियों में उलझे आपको सुख प्राप्त नहीं होगा। इसीलिए निडर होकर संकटों का सामना कीजिये और मेरे साथ प्रेम से कहिये राधे-राधे!

हम सब समय की महत्ता को पहचानते है। समय ही हमें बनाता है, समय ही हमें नष्ट कर देता है। कभी समय ठीक चलता है तो कभी बहुत ही खराब समय आता है।

विचित्र बात ये है कि हम फिर भी समय को ही नष्ट करते है। स्मरण रखियेगा समय केवल जाता है कभी आता नहीं है।

इसीलिए समय की प्रतीक्षा में समय व्यर्थ ना करें जो भी करना है आज, अभी इसी क्षण प्रारम्भ करें। फिर चाहे वो किसी को सुख देना हो या स्वयं को बदलने का प्रयास करना हो, कुछ भी हो, विलम्ब ना करें क्योंकि समय उसी का साथ देता है जो समय का सम्मान करता है। राधे-राधे!

कहते है सबकी सीमा होती है कठिनाइयों की, पीड़ा की, संकट की, अंधकार की भी। यदि किसी की सीमा नहीं होती तो केवल कड़े परिश्रम।

आपने देखा तो होगा रात कितनी भी काली हो सितारे परिश्रम से उससे लड़ते रहते है और अंत में सवेरा आ ही जाता है।

आँधियां पंछियों के बसेरे को तहस-नहस कर देती है लेकिन पंछिया अपने परिश्रम से उसे पुनः बना ही लेती है। क्योंकि सीमित को असीमित से हारना पड़ता है और परिश्रम असीमित है। राधे-राधे!

बहती नदियां कितनी सुन्दर होती है, पावन होती है, जहां से जाती है वहां एक नया जीवन प्रदान करती है। धरा को सींचती है, अकाल को दूर रखती है और कदाचित इसलिए नदी को माँ समान पूजा जाता है।

किन्तु क्या कभी आपने ये सोचा है कि नदी जन्म कैसे लेती है? क्या ये प्रारम्भ से ही इतनी विशाल होती है।

नहीं, वर्षा की छोटी-छोटी बूंदे गिरकर मिलती है एक सूक्ष्म धारा बनाती है, ये धारा पर्वतों के हिन को काटते हुए, स्वयं को पिघलाते हुए जल प्रपातों से गिरती है, चट्टानों से टकराती है और फिर जाके नदी बनती है।

इसी प्रकार ऐसे ही सीधे-सीधे कोई महान नहीं बन जाता छोटे-छोटे प्रयास मिल कर एक विशाल व्यक्तित्व बनाते है। इसलिए जीवन में प्रयास करते रहिये अस्तित्व अपने आप बन जायेगा। राधे-राधे!

Good Morning Radhe Radhe Quotes In Hindi

कभी-कभी हम अपने माता-पिता से कितने क्रोधित रहते है। सोचते है कि उनका ध्यान हमारी ओर है ही नहीं, सोचते है कि उनके लिए हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं, उनसे रुष्ट हो जाते है।

किन्तु क्या कभी आपने ये अनुभव किया है, हमें हमारी आँखों से हमें हमारी नाक कभी दिखाई नहीं देती? क्योंकि वो आँखों के बहुत ही निकट है आँखों के मध्य में है। किन्तु जब कोई मुख पर प्रहार करे हाथ सबसे पहले नाक के क्षेत्र को ही ढक लेते है।

माता-पिता भी कुछ ऐसे ही होते है आपकी भलाई के लिए, आपकी सुरक्षा के लिए सदा तत्पर रहते है।

इसलिए उनके प्रेम को कभी मत आंकिये, आवश्यक नहीं की उनका प्रेम हर बार आपको स्पष्ट रूप से दिखाई दे क्योंकि ये ऐसा प्रेम है जो निरंतर आपके साथ ढाल बन कर आपकी रक्षा करेगा। राधे-राधे!

बबूल का पेड़ कितना विशाल होता है, पीपल का पेड़ भी विशाल होता है। किन्तु क्या आपने कभी सोचा है क्यों बबूल के पेड़ को काट के उसका उपयोग किया जाता है और क्यों पीपल के पेड़ को पूजा जाता है।

इसलिए क्योंकि पीपल का पेड़ उसके नीचे बैठे पथिक को छाया देता है, अपनी डाली पर असंख्य पंछियों को बसेरा देता है, किसी को कांटे चुभो कर दूर नहीं करता बल्कि उसे शीतल छाया देकर उनकी थकान हर लेता है।

इस संसार में यदि सम्मान पाना है तो पीपल की भांति ही बनना होगा। कुछ देना सीखो आनंद, सुख, शीतलता, बांटना सीखो और कांटो की भांति कभी किसी को कष्ट ना दो। सम्मान स्वयं आपके पास चल के आएगा और मन, मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे!

हम सब ये मानते है कि हमें कभी ना कभी किसी ना किसी स्थान पर प्रेम होता ही है। फिर चाहे वो माता-पिता को संतान से हो, ज्ञानी को ज्ञान से हो, किसी कलाकार को कला से हो आदि इत्यादि।

किन्तु क्या वास्तव में ये प्रेम ही है? मोह भी तो हो सकता है। अब आप पूछेंगे प्रेम और मोह में क्या अंतर है ? अंतर है “बंधन” का जो आपको बांधे वो मोह है, प्रेम नहीं। प्रेम वो है जो आपको मुक्त कर विकास की और भेजे।

चलो आपको एक उदाहरण देता हूँ कुछ माता-पिता अपनी संतान को किसी अन्य नगर में पढ़ने के लिए भेज नहीं पाते।अपनी संतान को उसके मित्रों के साथ खेलने के लिए भेज नहीं पाते। चिंतित रहते है कि कहीं उनकी संतान को कोई पीड़ा ना पहुंचे, इसलिए उसे बाँध कर रखते है।

ये प्रेम नहीं है, ये मोह है क्योंकि यदि ये प्रेम होता तो वो चाहते कि सन्तान माता-पिता की छांव से बाहर निकल कर संसार को देखे उसे समझे, उससे ज्ञान ले अपने अनुभवों से सीख कर अपना स्वयं का एक व्यक्तित्व बनाये।

स्मरण रखियेगा मोह से भय पैदा होता है और प्रेम से केवल आनंद इसलिए बांधिए मत मुक्त कीजिये। राधे-राधे!

संसार में ये संबंध बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते है। अब प्रश्न ये उठता है कि संबंध कैसे होने चाहिए? सम्बन्ध शब्द के प्रारम्भ में ही सम शब्द आता है।

सम अर्थात समानता तो किसी के साथ संबंध निभाते हुए इतना मत झुकिए कि उठने के लिए किसी के सहारे की आवश्यकता पड़ जाये।

स्मरण रखियेगा जो झुकाना चाहे वो कभी संबंध निभा नहीं पायेगा। संबंध उसी के साथ जोड़िये, जो आपको समान माने, आपको सम्मान दे क्योंकि सम्मान से ही संबंध पनपेगा और बढ़ेगा। राधे-राधे!

कभी सोचा है जब माता संतान को जन्म देती है तो क्या होता है? नौ माह का गर्भ, प्रसव की तीव्र पीड़ा।

कहते है ये पीड़ा इतनी भयंकर होती है कि मानो जैसे संतान के जन्म के साथ माता को भी एक नया जन्म मिल जाता है और इस जन्म के साथ अंत होता है माता की पीड़ा का।

किन्तु यदि आप दृष्टिकोण बदल के देखे तो आप ये समझेंगे पीड़ा का ये अंत एक अपार आनंद का प्रारम्भ है। आरम्भ संतान का, संतान माता-पिता के लिए सुख का प्रारम्भ है।

जीवन के साथ भी यही होता है। हम किसी-किसी संबंध या किसी स्थिति के पीड़ादायक अंत के कारण इतना विचलित हो जाते है कि उस आनंदनमयी प्रारम्भ को देख ही नहीं पाते है। स्मरण रखियेगा पीड़ा आनंद के प्रारम्भ का लक्षण है। राधे-राधे!

Radhe Krishna Love Quotes In Hindi

अग्नि क्या करती है? जलाती है फिर चाहे वो लकड़ी हो, कोयला हो, वस्त्र हो जो भी आप अग्नि में डालोगे वो भस्म हो जायेगा।

किन्तु “सोना”, यदि आप सोने को अग्नि में डालोगे तो वो कुंदन बन कर अपना अस्तित्व निखार लेता है। यदि आप लोहे को ताप दो तो वो फौलाद बन जाता है क्यों, क्यों होता है ऐसा? क्योंकि उनके भीतर की अग्नि उनको जलाने वाली अग्नि से अधिक तीक्ष्ण होती है।

ये अग्नि है, निश्चय की, ये अग्नि है पवित्रता की। यदि आपका निश्चय दृढ़ है, आपके विचार पावन है तो कुंदन बन कर निकलेगा, फौलाद बन कर निखरोगे। भीतर से बल पाओगे और कोई आपके साथ अनिष्ट नहीं कर पायेगा, राधे-राधे!

व्यक्ति का जीवन क्या है? अब आप कहेंगे जन्म और मृत्यु के बीच का समय और मृत्यु कब होती है जब व्यक्ति श्वास लेना छोड़ दे, हाथ-पाँव चलाना छोड़ दे, सोचना छोड़ दे।

ऐसा नहीं है, देखिये जल की मृत्यु तब नहीं होती जब वो सूख जाती है, जल की मृत्यु तब होती है जब वो प्यास बुझाना बंद कर देती है। सूर्य की मृत्यु तब नहीं होती जब उस पर ग्रहण लग जाये या जब सूर्यास्त हो जाये, सूर्य की मृत्यु तब होती है जब वो भविष्य में इस संसार के जीवों को प्रकाश की आशा देना छोड़ दे।

उसी प्रकार मनुष्य का अंत, उसकी मृत्यु तब होती है जब उसके भीतर की करुणा का अंत हो जाये। “करुणा” वो भाव है जो मनुष्य को मनुष्य बनाये रखती है जो एक मनुष्य को किसी और मनुष्य का कष्ट, उसकी आवश्यकता का अनुभव कराती है जो उसे बल देती है किसी और की सहायता करने के लिए, उसे पात्र बनाती है इस सृष्टि का नियंता बनने के लिए।

देखिये इस संसार में मृत्यु केवल एक बार होती है तो इस करुणा को क्यों मारना स्वयं को मनुष्य बनाये रखिये, मृत्यु के पश्चात भी जीवित रहेंगे, राधे-राधे!

नदी का जल मीठा होता है, सागर का जल खारा होता है, और किसी नाले का जल दुर्गन्ध से भरा, क्यों?

नदी का जल मीठा होता है क्योंकि वो सबको जल देती है, सागर जल लेता है इलसिए खारा होता है और नाला उसका बहना रूक जाता है और इसी कारण से वो दुर्गन्धपूर्ण हो जाता है, किसी काम का नहीं रहता।

हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है यदि नदी की भांति जीवन में कुछ देना सीखो तो जीवन में मिठास बनी रहेगी। यदि सागर की भांति बाँटने के स्थान पर केवल संचय करते रहो तो मन में खट्टास बढ़ती रहेगी और यदि नाले की भांति बहना छोड़ दो, कर्म करना छोड़ दो तो किसी काम के नहीं रहोगे।

इसलिए बिना किसी विराम के कर्म करते रहो और जो कुछ भी आपके पास है उसे बाँटना सीखो। मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे!

मनुष्य में एक बड़ा ही विशेष गुण पाया जाता है “मूल्यांकन करना” क्या महंगा है, क्या सस्ता है। जिसे खरीदने के लिए अधिक धन लगे, अधिक परिश्रम लगे वो महंगा। जिसे खरीदने के लिए कम दाम, कम परिश्रम लगे वो सस्ता।

परन्तु क्या यही पूर्णतया सत्य है? अब आपके सामने एक पात्र है जिसमें जल भरा है और एक सोने का सिक्का, बताइये इन वस्तुओं में अधिक महंगा क्या है? आप कहेंगे सीधी सी बात है सोने का सिक्का ही अधिक महंगा होगा, इस सोने के सिक्के से आप ऐसे कई सारे जल के पात्र खरीद सकते है।

चलिए उचित है, अब सोचिये यदि आप किसी मरुस्थल के बीचों-बीच फंसे हुए है, प्यास से तड़प रहे है तब क्या महंगा होगा? तब क्या आप इस एक घूँट जल के लिए अपने जीवन भर की कमाई, पाई-पाई यूँ ही, यूँ ही गंवाने के लिए सज्ज हो जायेंगे?

स्मरण रखियेगा जीवन में महंगी या सस्ती वस्तु नहीं, परिस्थिति होती है और आवश्यकता पड़ने पर जो काम आये उससे अनमोल इस संसार में और कुछ नहीं। राधे-राधे!

ये है सुई और ये है तलवार। अब आप बताइये आपके दृष्टिकोण से इन दोनों वस्तुओं में से क्या अधिक शक्तिशाली और महत्त्वपूर्ण होगा?

अब आप कहेंगे तलवार ही अधिक शक्तिशाली और महत्त्वपूर्ण है। चलिए मानते है तलवार अधिक भारी होती है, तलवार युद्ध में आपको विजय दिलाती है, शत्रु का विनाश करती है।

किन्तु तलवार से कभी आप अपने वस्त्र नहीं सिल पाएंगे। यदि पाँव में काँटा चुभ जाये तो उसे आप तलवार से नहीं निकाल सकते, आपको सुई का उपयोग करना ही होगा।

अब बताइये तलवार को पाने के पश्चात इस प्रकार क्या सुई को खो देना उचित होगा? उसी प्रकार जीवन में सम्पन्न होने के पश्चात आप उन मित्रों को ना खोइए जो कम सम्पन्न हो, दरिद्र हो।

क्योंकि वो आपके साथ तब थे जब आप कुछ भी नहीं थे और आवश्यकता पड़ने पर वही आपके काम आने वाले है, सम्पन्न मित्र नहीं। तो जिससे प्रीत की है उससे मीत निभाइये। चित्त आनंद से जागेगा, राधे-राधे !

Radhe Radhe Wishes In Hindi

इस कमल के पुष्प को देख रहे है आप? इसकी एक विशेष बात है जल स्तर कितना भी बढ़ जाये ये पुष्प सदैव जल सतह के ऊपर ही रहेगा और इसका कारण है इसकी ये नाल।

जैसे-जैसे जल स्तर बढ़ता है वैसे-वैसे ये नाल भी बढ़ती है और इस पुष्प को जल सतह के ऊपर ही रखती है।किन्तु जब जल स्तर घटता है ये नाल घट नहीं पाती और फिर स्वयं के साथ ही इस पुष्प का भी विनाश कर देती है।

मनुष्य के साथ भी यही होता है जैसे-जैसे मनुष्य समृद्ध होता जाता है वैसे-वैसे उसका जीवन स्तर बढ़ता जाता है। उसकी अपेक्षाएं, उसकी आवश्यकताएं बढ़ती जाती है। किन्तु जब सम्पन्नता घटने लगे उसकी आवश्यकताएं कम नहीं हो पाती और फिर इसी कमल की भांति मनुष्य भी डूब जाता है।

तो फिर क्या करें, क्या किया जाए इस परिस्थिति में? जीवन स्तर बढ़ाना छोड़ दे कदापि नहीं। किन्तु जीवन स्तर बढ़ाने के साथ-साथ ही अपनी आत्मशक्ति को सुदृढ़ करें। संकट का समय आने पर आप अपना जीवन कैसे व्यतीत करेंगे इसका अभ्यास करें।

क्योंकि जीवन स्तर और जल स्तर तो घटते-बढ़ते रहेंगे। ये आप पर निर्भर करता है कि आप इन दोनों के बीच का ताल-मेल कैसे सुनिश्चित करते है। राधे-राधे!

इस संसार में सबसे बड़ा पाप क्या है? कोई कहेगा असत्य, कोई कहेगा छल तो कोई कहेगा लालच। नहीं, संसार में सबसे बड़ा पाप है “नारी का असम्मान” नारी का मान भंग करना। क्योंकि ये अपराध केवल नारी के शरीर को ही नहीं उसके मन और उसकी आत्मा पर भी प्रहार करती है।

तो प्रश्न ये उठते है जिसने भी ये अपराध किया है उसे दंड क्या दिया जाये? फिर कोई कहता है शारीरिक पीड़ा, कोई कहता है मृत्युदंड। किन्तु इस अपराध का दंड निश्चित करने से पूर्व क्या ये जाना महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अपराधी है कौन?

अब आप कहेंगे कि सरल सी बात है वही पुरूष जिसने स्त्री का मान भंग किया। किन्तु क्या ये पूर्णतया सत्य है? क्या स्वयं के अपमान के लिए, स्वयं के सम्मान को खोने के लिए कभी-कभी नारी स्वयं उत्तरदायी नहीं हो सकती? सोच के देखिये।

सम्मान खोने से बचने के लिए, पहले सम्मान की सीमा पर दृष्टि रखना आवश्यक है। रावण सीता का हरण इसलिए कर पाया क्योंकि सीता ने भोलेपन के कारण रावण का उस सीमा को लांघना सरल कर दिया। किन्तु अशोक वाटिका में उसी सीता को रावण स्पर्श तक नहीं कर पाया क्योंकि उसने रावण और उसके मध्य में तिनके की एक छोटी सी दीवार बना दी थी।

जीवन में ना कहना सीखें यदि कोई आपके सम्मान की सीमा को पार करने का प्रयास करे तो उसे वही रोकना सीखे। आपके ऊपर उठे पहले हाथ को, पहले कटाक्ष को वही रोक देना सीखिए। फिर किसी पुरूष में साहस नहीं कि वो पुनः आपका अपमान करने का प्रयास भी कर सके। क्योंकि नारी जननी है, अराध्य है तो स्वयं को को निर्मल मान कर आप अपराधी ना बने। राधे-राधे!

इस हीरे को देख रहे है आप? लाखों, करोड़ों वर्षों तक धरती के गर्भ में रहने के पश्चात ये इतना कठोर बनता है। किन्तु जब खान से निकाला जाता है कोयले की ही भांति होता है श्वेत, कठोर, निश्तेज। किन्तु जब उसे तराशा जाता है तब उसे तेज प्राप्त होता है और तब ये अपना मूल्य बढ़ाता है। 

संसार में मनुष्य के साथ भी यही होता है मनुष्य की बुद्धि, अनुभव उन वर्षों के कारण नहीं बढ़ती जो वर्ष हमने हमारे जीवन में व्यतीत किये है बल्कि उन क्षणों से निखरती है जब हमने कठिनाइयों का सामना किया, चुनौतियों का सामना किया, संकटों का सामना किया छल और पीड़ा से।

इसलिए यदि आपके जीवन में आपके सामने संकट आये, चुनौतियाँ आये, पीड़ा आये तो उनसे भयभीत मत होइएगा उसका स्वागत कीजिये तो यही परिस्थितियां आपको वो अनुभव देंगी जो आपको प्रबुद्ध करे। राधे-राधे!

प्रकृति ने हर जीव में एक भाव भरा है ताकि वो निश्छल ना रहे, कुछ ना कुछ कर्म करता रहे और वो भाव है “भूख” संसार में हर जीव, हर पशु, पक्षी, प्राणी परिश्रम करता रहता है अपनी इस भूख को मिटाने के लिए।

परन्तु क्या अन्य जीवों की भांति मनुष्य की भूख भी पेट तक ही सीमित रहती है? तन की भूख मिटाते-मिटाते कब ये भूख मन और माया की तृष्णा में बदल जाती है पता ही नहीं चलता और अधिकतर ये तृष्णा धन संग्रहित करने तक ही रह जाती है।अपना जीवन जीना छोड़ कर किसके लिए ये धन संग्रहित कर रहे है? आने वाली पीढ़ी के लिए।

बड़ी विचित्र बात है अपना जीवन जीना छोड़ कर धन संग्रहित करते-करते अपने जीवन का सुख भी मिटा रहे है और आने वाली पीढ़ी को कर्म करने से भी बाधित कर रहे है।

पूत कपूत तो क्यों धन संचय, पूत सपूत तो क्यों धन संचय अपनी संतान को संस्कार दीजिये, धन नहीं। यदि संतान संस्कारी हो तो अपना स्वयं का एक संसार बना लेगी यदि असंस्कारी हो तो आपका बना बनाया संसार यूँ ही नष्ट कर देगी।

इसलिए जीवन में यदि कुछ संचय करना है तो ज्ञान संचय कीजिये, प्रेम संचय कीजिये और मेरे साथ प्रेम से कहिये राधे-राधे!

जीवन को रथ कहा जाता है किन्तु क्यों? अब आप कहेंगे इसलिए क्योंकि जीवन भी रथ की ही भांति चलता रहता है। किन्तु कभी आपने इस रथ को समझने का प्रयास किया है?

रथ में आगे अश्व होते है और पीछे पहिये। ये अश्व आपके “कर्म” है और ये पहिये “कर्मफल” ये अश्व जहाँ जाते है ये पहिये उसी के पीछे-पीछे आते है।

यदि आपके अश्व यानि आपके कर्म शुभ, सरल मार्ग पर चले तो आपकी यात्रा आनंदमय होगी। यदि दुष्कर्म के बुरे पथ पर चले तो आपकी यात्रा गड्ढों और झटकों से युक्त होगी।

अब चयन आपका है आप क्या चाहते है? आपकी यात्रा आनंदमयी हो या पीड़ादायी हो। अपने कर्मों के अश्वों को नियंत्रण में रखिये। फल का पहिया सदैव आपको मधुर रास ही देगा। राधे-राधे!

Radhe Krishna Good Morning Quotes In Hindi

बताइये श्रेष्ठ कौन, रेशम के धागे बनाने वाला या उन धागों को बुन कर वस्त्र बनाने वाला? निश्चित रूप से वस्त्र बनाने वाला अब बताइये श्रेष्ठ क्या है?

माटी को पूरे तट बार बिखेर के रख देने वाली बाढ़ या उस माटी को समेट कर उसी से मूर्ति बनाने वाला मूर्तिकार? निश्चित रूप से मूर्तिकार अब बताइये श्रेष्ठ कौन है?

देवताओं और दानवों का वो दल जिसने अमृत प्राप्ति के लिए इस संसार में हलाहल फैला दिया या वो महादेव जिन्होनें उस हलाहल को सूक्ष्म करके अपने कंठ में समाहित कर लिया? निश्चित रूप से महादेव श्रेष्ठ है।

इसी प्रकार संसार में छोटी-छोटी बातों को बड़ा करने वाले श्रेष्ठ नहीं होते क्योंकि छोटी-छोटी नोक-झोंको को द्वंद्व में परिवर्तित करना बड़ा ही सरल है।

किन्तु श्रेष्ठ सदैव वो होता है जो बड़े से बड़े युद्ध को समझौता बना कर समाप्त कर दे। राधे-राधे!

संसार में सबसे कठिन कार्य क्या है? कोई कहेगा पर्वत पर चढ़ना, कोई कहेगा तैरना, कोई कहेगा उड़ना। किन्तु क्या ये वास्तव में कठिन है ?

असल में देखा जाये तो बस ये थोड़े भिन्न है जो कर्म हमारे लिए करना थोड़े भिन्न हो हम उसे कठिन समझ लेते है।

जैसे तैरने की कला भिन्न है, पर्वत चढ़ने की कला भिन्न है, उड़ने की कला भिन्न है। जैसे कि कुछ लोग गणित और विज्ञान को कठिन समझ लेते है किन्तु वास्तव में बस ये साहित्य से थोड़े से भिन्न है कठिन नहीं।

देखिये, संसार में कठिन कुछ भी नहीं है बस एक-दूसरे से भिन्न है जैसे कुछ लोग हो, संबंध, किसी की सोच या विचारधारा हो।

कभी-कभी हमें समझ में नहीं आता क्योंकि हमारी सोच और विचारधारा से वो भिन्न है किन्तु यदि ये समझ लिया जाये कि वो कठिन नहीं है बस थोड़े भिन्न है तो अनेकों संबंधों को बचाया जा सकता है। राधे-राधे

कभी आपने किसी पंछी को देखा है? तीव्र वायु, भयंकर वर्षा, हिंसक जीव कई बार उनके घोसलों को नष्ट कर देते है किन्तु फिर भी वो अँधियों से बैर नहीं रखते, वो कभी वर्षा से द्वेष नहीं करते ना ही हिंसक पशुओं से प्रतिशोध लेती है।

वो करती है स्थान परिवर्तन, किसी और सशक्त डाल पर फिर से अपना घोंसला बनाने का प्रयास करती है और फिर सफल होने के बाद परिवार बसा ही लेती है और कुछ ही माह में उनकी नहीं संताने आकाश में पंख फड़फड़ाते हुए दिखती है।

दूसरी ओर एक ना प्रहार का प्रतिशोध लेने के लिए मनुष्य की बस्तियों में घुस जाता है और अंततः वो स्वयं ही मारा जाता है। यही सीख हम मनुष्यों के लिए भी लागू होती है। प्रतिशोध मनुष्यों को स्वयं ही जला देता है, उत्थान से पतन की ओर ले जाता है।

इसलिए यदि जीवन में ऊपर उठना है तो परिवर्तन की सोच से कर्म कीजिये अन्यथा प्रतिशोध तो आपको रसातल पहुंचा ही देगा। राधे-राधे!

इस फल को देख रहे है आप? ये वो फल है जो पेड़ की सबसे ऊपर वाली शाखा पर पाया जाता है। किन्तु जब ये टूटता है तब ये उस आकाश की ओर नहीं जाता जो ऊपर है, वो जाता है उस धरती की ओर जो नीचे से उसे तक रही होती है।

क्यों? क्योंकि इस फल को अपनी ऊँचाई का ज्ञान धरती की निचाई देखकर होता है। यही बात हम मनुष्यों के लिए भी लागू होती है, यदि आप सम्पन्न है तो उनकी सहायता अवश्य करें जो आपसे सामर्थ्य में कम है, जिनको सहायता की आवश्यकता हो।

आप सामर्थ्य में अधिक है क्योंकि वो आपसे कम है। देखिये जीवन में आनंद केवल बढ़ना ही नहीं है बल्कि उनकी सहायता भी करना है जो किसी कारणवश आपसे नीचे रह गए और जब एक फल ये बात समझ सकता है तो आप क्यों नहीं? राधे-राधे!

समय बड़ा ही विचित्र अनुभव देता है। जब प्रतीक्षा कर रहे हो तो लम्बा हो जाता है, एक-एक क्षण एक-एक दिन की तरह बीतता है।

वही यदि कहीं जाने में विलम्ब हो रहा हो तो समय दौड़ने लगता है। प्रसन्नता में निकल जाता है, निराशा में ठहर जाता है। अपनों के साथ हो तो समय का पता ही नहीं चलता शत्रुओं के साथ हो तो वही समय बुरा हो जाता है।

परन्तु क्या यही वास्तिवकता है? नहीं, समय तो समय है अपनी गति से चलता है। बस उसकी गति का आभास हमारी मानसिक अवस्था के साथ बदलता रहता है।

इसलिए समस्या समय में नहीं है हमारी मानसिकता में है तो स्वयं को प्रसन्न रखिये, दूसरों को प्रसन्न रखिये।

बीती हुई बातों को भूल जाइये और उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर हो जाइये। समय सदैव अच्छा ही लगेगा, प्रेम कीजिये सबसे। समय सदैव प्यारा ही लगेगा, राधे-राधे!

“अग्नि” जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है ये अग्नि। ये अग्नि ही है जो ऊर्जा बन कर हमें जीवित रखती है। किन्तु सोचिये यदि ये ऊर्जा क्रोध की अग्नि बनकर भड़क जाए तो क्या होता है?

एक तिनके में लग कर सम्पूर्ण वन को भस्म कर देती है। उसी प्रकार मनुष्य के क्रोध की अग्नि भी दूसरों को तो जलाती ही है किन्तु उससे पूर्व स्वयं उसे भस्म कर देती है। तो क्या किया जाए, कैसे नियंत्रण में किया जाए इसे?

उत्तर है- इसमें जल मिला कर, जल की भांति बहने दीजिये इसे। ठीक वैसे ही जैसे सूर्य अपनी अग्नि को तेज बनाकर आप तक पहुंचाता है।

यही अंतर है सूर्य की अग्नि में और हमारे क्रोध की अग्नि में। सूर्य की अग्नि बह कर, छन कर हम तक आती है और इसलिए वो तेज कहलाती है।

दूसरी ओर हमारे क्रोध की अग्नि की तो कोई सीमा ही नहीं है। तो अपने भीतर की ऊर्जा को क्रोध बनाकर जलाना चाहते है या ऊर्जा बना कर बहाना चाहते है, निर्णय आपका है। राधे-राधे!

ये संसार बहुत ही बड़ा है और हम उसके सामने बहुत ही छोटे है। इस संसार में लाखों लोग ऐसे मिल जाते है जो हमें समझते कि संसार कितना बड़ा है, कितना अद्भुत है, कितना सूंदर है और इस संसार की रचना करके ईश्वर ने कितना बड़ा कर्म किया।

किन्तु आपको इस जीवन में कुछ मुट्ठी भर ही लोग मिलेंगे जो ये बताएंगे कि इस संसार में आप कितने महत्त्वपूर्ण है, आप कितने अद्भुत हो। यदि आप उनके साथ हो तो वो कितना अच्छा सृजन कर सकते है, इस संसार को और कितना पवित्र बना सकते है।

तो इस संसार को पीछे छोड़िये उन मुट्ठी भर लोगों को महत्व दीजिये क्योंकि वही आपके अपने है और वही आपको उचित मार्ग पर ले जायेंगे।

मनुष्य को तो बरसाती नाला भी बहा ले जाता है, डुबों तो सागर भी देता है किन्तु गंगाजल सबसे अधिक शुद्ध है क्योंकि उसकी कुछ ही बूंदे मनुष्य को मुक्त कर देती है, राधे-राधे!

Feeling Radhe Radhe Quotes In Hindi

ये है एक कोमल सा धागा सोचता हूँ यदि मैं इससे वस्त्र बुन लूँ तो स्वयं के लिए कितनी सुन्दर पोशाक बना सकता हूँ किन्तु यदि इसे मैं ….कोई बात नहीं।

देखिये ये धागा तो जुड़ गया बस इसमें अंतर ये है कि ये पहले जैसा सरल नहीं रहा और इसकी लम्बाई भी तनिक कम हो चुकी है।

तो संसार में प्रेम के साथ भी यही होता है प्रेम का ये धागा जो दो व्यक्तियों को बाँध के रखता है, “अहंकार” और “स्वार्थ” का वार सह नहीं पाता, टूट जाता है।

प्रयास करने पर ये संबंध भले ही जुड़ जाए किन्तु फिर भी पहले जैसे नहीं हो पाता क्योंकि मन में गाँठ पड़ जाती है। इसलिए प्रेम को सहज के रखिये अहंकार और स्वार्थ से दूर रखे, राधे-राधे!

क्या आप इस मकड़ी के जाले को देख रहे है? मकड़ी बड़े ही परिश्रम से इसे बनाती है अपने शरीर के रस से इसे बुनती है। क्या आप इसका उद्देश्य जानते है?

“आखेत” मकड़ी इन जालों में नन्हें कीटों को इसमें फंसा कर उन्हें अपना भोजन बना लेती है और क्या आप ये बात जानते है एक दिन मकड़ी इन्हीं जालों में फंस कर मृत्यु को प्राप्त हो जाती है।

बताइये क्या करते है आप इन जालों के साथ देखते ही हटा देते है इनका अस्तित्त्व है ना।

दूसरी ओर चिड़िया का घोंसला, चिड़िया भी बड़े परिश्रम से इसे बनाती है किन्तु यदि चिड़िया इसे छोड़ कर चली भी जाए उसके पश्चात भी लोग उसका विनाश नहीं करते।

कारण क्या है? कारण ये है कि इसका निर्माण जीवन के संचयन के लिए किया गया था, आखेत के लिए नहीं स्मरण रखियेगा जीवन में आपका परिश्रम कितना भी अधिक हो यदि आपका लक्ष्य शुभ ना हो तो आपको भी विनाश पाना ही होगा तो सृजन करते रहिये और मग्न होकर कहे राधे-राधे!

आपके विचार से मैं क्या कर रहा हूँ? आप कहेंगे मैं दीपक जला रहा हूँ, सही। किन्तु प्रश्न ये उठता है कि क्या मैंने आपसे कहा कि ये दीपक है? नहीं, क्या इस दीपक ने स्वयं अपना परिचय आपको दिया।

नहीं, फिर आपने कैसे जाना कि ये दीपक है? उत्तर है – “प्रकाश” जो स्वयं जल कर अंधकार में संसार को राह दिखाए, वो दीपक है। जो निराशा में आशा की जोत दिखाए, वो दीपक है। 

दूसरी ओर सर्प जो दिखे नहीं बस फ़ुफ़कार दे तो लोग भयभीत हो जाते है। अर्थात व्यक्ति का परिचय उसके कर्मों से मिलता है। इसलिए आपको ये बताने की आवश्यकता नहीं कि आप कौन है?

ये आपके कर्म ही निश्चित करेंगे कि लोग आपसे दीपक समझकर प्रेम करेंगे या सर्प समझ कर भयभीत रहेंगे। राधे-राधे!

“समय” कितना विचित्र होता है। समय हमारे साथ हो तो हम स्वयं को राजा मान लेते है। वही समय यदि विरुद्ध हो जाये तो रंक बनने में समय नहीं लगता।

इसलिए मनुष्य की एक आदत होती है बुरे समय के लिए कुछ बचा कर रखता है। संबंधी, मित्र बुरे समय में साथ छोड़ देते है। यश, मान बुरे समय में चला जाता है।

तो व्यक्ति सोचता है क्यों ना धन संचय कर लें, धन का तो कोई मन नहीं होता जो समय आने पर बदल जाये। संसार कहता है कि धन का संचयन करते रहो, बुरे समय में काम आएगा ही।

मैं कहता हूँ शुभ कर्म करते रहो, आनंदित रहो, स्वयं पर और ईश्वर पर विश्वास रखो बुरा समय कभी आएगा ही नहीं। राधे-राधे!

 

प्रकृति ने मनुष्य को एक विशेष शक्ति दी है, अन्य जीवों से अधिक शक्ति दी “स्मरण शक्ति” यही शक्ति मनुष्य को अन्य जीवों से भिन्न बनाती है।

इतिहास लिखने की प्रेरणा देती है, ज्ञान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे भी बढ़ाती है और जो भूल जाते है अधिकतर रूप से वो उपहास और दया के पात्र बन जाते है परन्तु क्या यही पूर्णतया सत्य है?

नहीं, यही स्मरण शक्ति मनुष्य के विकास में सबसे बड़ी बाधा भी बन जाती है उसके चित्त को दूषित कर देती है। बुरे अनुभव, किसी का दिया गया धोखा, किसी का किया गया कटाक्ष मनुष्य भुला नहीं पाता और फिर लग जाता है “प्रतिकार” पहले समय नष्ट करता है प्रतिकार की तैयारी में फिर समय नष्ट करता है प्रतिकार का अवसर ढूंढने में।

यदि संतोष पाना है, यदि जीवन में आनंद पाना है तो स्मरण शक्ति का सदुपयोग कीजिये। अपनी स्मरण शक्ति को केंद्रित कीजिये केवल अच्छी बातें और अच्छी यादों की ओर, जीवन में प्रसन्नता आएगी। राधे-राधे!

मनुष्य अपने परिवार के लिए क्या कुछ नहीं करता? दिन-रात परिश्रम करता है ताकि अपने परिवार की आवश्यकता पूर्ति के लिए धन कमा सके। परन्तु क्या केवल धन कमाना क्या पर्याप्त है?

आप कहेंगे हाँ क्यों नहीं?धन से सब कुछ मिलता है, विद्या मिलती है, घर मिलता है, औषधि मिलती है क्या कुछ नहीं मिलता है? ये सब एक सीमा तक ठीक है किन्तु तनिक मन से सोच के देखिये जब बालक रोगी होता है वो उस कड़वी औषधि को क्यों पी लेता है?

इसलिए क्योंकि उसके पिता ने इस औषधि को धन से खरीदा है। नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि उसके सामने खड़ा उसका पिता उसे उन पर विश्वास है। विश्वास है कि वो उसे कुछ नहीं होने देंगे। ये विश्वास, ये संस्कार, ये सीख कभी धन से नहीं मिलती। ये मिलती है उस समय से जो माता-पिता ने अपनी संतान के साथ बिताया है।

इसलिए जीवन में धन अवश्य कमाइए किन्तु अपने परिवार को भी समय दीजिये, प्रसन्नता मिलेगी। राधे-राधे!

कभी किसी पंछी को देखा है? जब उसे अंडे देने होते है तो वो सर्वप्रथम एक स्थान खोजता है। एक स्थान जो वर्षा, धूप, शत्रुओं से सुरक्षित हो फिर वो अपना घोंसला बनाता है फिर अंडे देता है और फिर जब उन अण्डों से नन्हीं संतानें निकल आती है तो उन्हें भोजन देता है, उनकी सुरक्षा करता है परन्तु जब उनके पंख निकल आये तो ना उन्हें भोजन देती है ना ही उन्हें घोंसला बनाना सिखाती है।

केवल एक ही कला सिखाती है बस फिर वो नन्हीं संतानें उड़ने की कला सीख कर अपना भोजन लाना सीख जाते है स्वयं घोंसला बनाना सीख जाते है और हम मनुष्य क्या करते है?

संतान के बड़े होने के पश्चात भी उनकी चिंता में सूखते है, प्रयास करते है कि उनके लिए घर बना सके। संतान को और भी शक्तिशाली बनाने के स्थान पर पंगु कर जाते है।

जीवन में वही कीजिये जो एक पंछी करता है अपनी संतान को उड़ने की कला सिखाइये, संस्कार दीजिये और एक समय के पश्चात उसे स्वयं अपना आकाश चुनने को मुक्त कर दीजिये। राधे-राधे!

Radhe Radhe Quotes In Hindi Image

सागर पर सेतू बांधने की कथा के विषय में तो आपने सुना ही होगा। श्री राम की सेना को सौ योजनों के समुन्द्र को पार करके लंका पर आक्रमण करना था। वास्तुका, नल और नील ने सेतू बांधने का उपाय सोचा।

किन्तु अब सेतू बांधा कैसे जाए ? समुन्द्र इतना गहरा है, कितने पत्थर डाले जाये कि पार करने लायक स्थान हम समुन्द्र से ले सके। तब किया गया एक काम पत्थरों पर लिखा गया “राम” का नाम और जब इन पत्थरों को सागर में फेंका गया तो वो तैरने लगे।

अब कोई कहेगा ये राम के नाम की महिमा है, कोई कहेगा ये नारायण का कोई चमत्कार है, किन्तु नहीं। ये राम का वो गुण है, उनके व्यक्तित्व की वो महानता है जिसने उनका प्रतिनिधित्व किया कि पत्थर भी सागर में तैरने लगे।

उसी प्रकार जहां हम नहीं होते वहां हमारे गुण हमारा प्रतिनिधित्व करते है। हमारे नाम की शक्ति हम स्वयं बनाते है अपने कर्मों से, अपने गुणों से।

अब चयन आपका है आपके नाम के सहारे कोई विपदा से बाहर निकल आता है या आपके अपयश के दुष्कर्मों से कोई डूब जाता है। अच्छे से चयन कीजियेगा। राधे-राधे!

अब आप सोच रहे होंगे की मैं इतनी एकाग्रता से इस चींटी को क्यों देख रहा हूँ? आपको बता दूं कि आज इस चींटी को देख कर मैं मंत्रमुग्ध हो चुका हूँ। इसके रूप, इसके आकार को देख कर नहीं, इसके प्रयासों को देख कर।

आप जानते है अनगिनत प्रयासों के पश्चात चींटी अपना छोटा सा घर बना पाती है जो अन्य जंतुओं के लिए सरल सी बात है। वो चींटी के लिए उसके जीवन की सबसे बड़ी घटना है सबसे बड़ी सफलता है। भविष्य में चींटी रहे न रहे उनके बनाये हुए घर वर्षों पश्चात तक टिके रहते है।

जीवन में सफलता के साथ भी ऐसा ही होता है आपको एक दिन में सफलता नहीं मिलती किन्तु यदि आप प्रतिदिन प्रयास करते रहे तो एक दिन आपको सफलता अवश्य मिलेगी।

स्मरण रखियेगा भाग्य के द्वार उनके लिए नहीं खुलते जो हार मान लेते है भाग्य उनका स्वागत करता है जो उठ कर उनके द्वार खटखटाने का प्रयास करते है तो प्रयास करते रहिये। सफलता एक ना एक दिन आपके पास आएगी ही। राधे-राधे!

ये ताला देख रहे है आप? ये ताला प्रहार से भी खोला जा सकता है प्यार से भी खोला जा सकता है अर्थात इस ताले को आप इस चाभी से भी खोल सकते है, इस हथौड़े से भी खोला जा सकता है किन्तु खुलने में अंतर होता है।

यदि आप इस ताले को को प्रहार से खोलोगे तो ये पुनः काम नहीं आएगा। किन्तु यदि आप इसे चाभी से खोलोगे तो ये सदा काम आएगा।

हमारे जीवन में संबंध भी कुछ इसी प्रकार होते है हमारे जीवन आनंद रुपी धन की रक्षा करते है किन्तु प्रेम से, यदि क्रोध से किया जाये तो किसी काम के नहीं रहते।

इसलिए उन्हें सदा प्रेम की चाभी से खोलिये। हर बार नया ताला ला सकते है आप, नए संबंध नहीं ला पाएंगे। राधे-राधे!

जीवन, क्या है ये जीवन? हम जन्म लेते है, बड़े होते है, हमारे माँ-बाप हमें पालते है फिर उनके धन से हमारा बालपन बीतता है फिर हम बड़े होते है हम विवाह कर लेते है, हमारी संताने होती है हम उनको पालते है फिर हम वृद्ध हो जाते है और एक दिन इस संसार से चले जाते है। क्या यही जीवन है? आता होगा ये प्रश्न मन में कई बार.. है ना?

अब तनिक जल की यात्रा देखिये – सागर से भाप बन कर उठता है, मेघ बन कर बरसता है फिर नदी बन कर पुनः सागर में समावेश करता है। किन्तु कभी ये प्रश्न नहीं करता कि उसका जीवन क्या है, उसका उद्देश्य क्या है?

हर भाव जीता है और दूसरों के लिए जितना बन सके देता जाता है। जब सागर में होता है तो अंसख्य जन-जीवों को जीवन देता है। जब सागर से भाप बन कर मेघ बनता है तो किसानों को आशा देता है कि फसल पुनः उपजे, जब वर्षा बन कर बरसता है तो इस सूखी, प्यासी धरा को सींचता है और जब नदी में होता है तो किनारे पर वनस्पतियों को जन्म देता है।

किन्तु सोचिये, क्या जल कभी ये सोचता होगा कि उसका जीवन क्या है, उसके जीवन का उद्देश्य क्या है? नहीं, वो बस अपना धर्म करता जाता है और जितना हो सके सबको आनंद देता जाता है।

इसलिए जीवन में कभी ये प्रश्न मत कीजियेगा कि ये जीवन क्या है, इस जीवन का उद्देश्य क्या है? बस इस जीवन को जिये और जितना हो सके उतना सबको आनंद दे। मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे !

कभी वर्षा के कारण बने कीचड़ से होकर आप अपने घर गए है? पादुका पहनने के कारण आप उस कीचड़ से तो बच जाते है। किन्तु उन पादुकाओं द्वारा उड़ने वाली बूँदे आपके वस्त्रों को मैला कर ही देती है किन्तु फिर भी इन बूंदों से आपके वस्त्र मैले हो जायेंगे इस कारण से आप पादुका पहनना तो नहीं छोड़ते।

इसी प्रकार जीवन में कुछ लोग ऐसे भी आते है, पादुका की भांति। जो आपको कीचड़ से तो बचा लेते है किन्तु वस्त्र रुपी आपके मन पर शंका के दाग लगा ही जाते है।

इन लोगों के कारण से मन को खिन्न करने की आवश्यकता नहीं है आवश्यक है ये सोचना कि आपको आपके पाँव कीचड़ से बचाने है या आपके वस्त्र। जीवन में गंभीर होना अच्छी बात है किन्तु हर बात को यदि गंभीरता से लेने लगोगे तो जीवन का आनंद समाप्त हो जायेगा।

ये संसारअनित्य है यहाँ पर ऐसा कुछ भी नहीं जो सदा के लिए जीवित रहेगा। तो जब तक ये जीवन है ” संतोष” और “आनंद” से जिए। स्वयं पर छिटकने वाले कीचड़ पर ध्यान ना दे बस आनंद बांटते रहे। मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे-राधे !

“परीक्षा” एक ऐसी व्यवस्था जिससे मुझे, आपको, सबको कहीं ना कहीं दो-चार होना ही पड़ता है। स्मरण कीजिये अपना “बालपन” आप परीक्षा देने बैठे है।

अब कुछ बालक ऐसे होते है जो वर्ष भर परिश्रम करते है, पढ़ते है, मन से परीक्षा देते है। कुछ बालक ऐसे होते है जो अपने आस-पास बैठे बालकों की नकल करते है और परीक्षा में उत्तीर्ण भी हो जाते है। बुरा लगता है ये सोचकर कि कोई बिना किसी परिश्रम के परीक्षा में उत्तीर्ण कैसे हो सकता है ?

किन्तु स्मरण रखियेगा जो नकल करते है वो परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकते है, सफल नहीं, क्योंकि वो नकल करते है। बिना प्रश्न को समझे, बिना उत्तर का तरीका निकाले।

यही हमारे साथ भी होता है, हम हमारे जीवन में दूसरों को देखते है, उनकी नकल करते है, उनकी भांति बनने का प्रयास करते है। किन्तु ना हमारे जीवन में सफलता आती है, ना आनंद आता है, क्यों?

क्योंकि हम एक विशेष बात भूल जाते है कि प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तित्व भिन्न होता है। आप दूसरों की नकल करके अपना जीवन व्यतीत कर सकते है।

किन्तु यदि अपने जीवन में सफलता लानी है, यदि अपने जीवन में आनंद लाना है तो स्मरण रखिये स्वयं के प्रश्नों का उत्तर, जीवन में स्वयं को ही खोजना होता है। राधे-राधे!